"ऋग्वेदः सूक्तं ७.२०" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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(लघु) Yann ७, ॥ : replace |
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उग्रो जज्ञे वीर्याय सवधावाञ्चक्रिरपो नर्यो यत करिष्यन | |
उग्रो जज्ञे वीर्याय सवधावाञ्चक्रिरपो नर्यो यत करिष्यन | |
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जग्मिर्युवा नर्षदनमवोभिस्त्राता न इन्द्र एनसो महश्चित |
जग्मिर्युवा नर्षदनमवोभिस्त्राता न इन्द्र एनसो महश्चित ॥ |
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हन्त वर्त्रमिन्द्रः शूशुवानः परावीन नु वीरो जरितारमूती | |
हन्त वर्त्रमिन्द्रः शूशुवानः परावीन नु वीरो जरितारमूती | |
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कर्ता सुदासे अह वा उ लोकं दाता वसु मुहुरा दाशुषे भूत |
कर्ता सुदासे अह वा उ लोकं दाता वसु मुहुरा दाशुषे भूत ॥ |
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युध्मो अनर्वा खजक्र्त समद्वा शूरः सत्राषाड जनुषेमषाळ्हः | |
युध्मो अनर्वा खजक्र्त समद्वा शूरः सत्राषाड जनुषेमषाळ्हः | |
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वयास इन्द्रः पर्तनाः सवोजा अधा विश्वंशत्रूयन्तं जघान |
वयास इन्द्रः पर्तनाः सवोजा अधा विश्वंशत्रूयन्तं जघान ॥ |
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उभे चिदिन्द्र रोदसी महित्वा पप्राथ तविषीभिस्तुविष्मः | |
उभे चिदिन्द्र रोदसी महित्वा पप्राथ तविषीभिस्तुविष्मः | |
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नि वज्रमिन्द्रो हरिवान मिमिक्षन समन्धसा मदेषु वाुवोच |
नि वज्रमिन्द्रो हरिवान मिमिक्षन समन्धसा मदेषु वाुवोच ॥ |
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वर्षा जजान वर्षणं रणाय तमु चिन नारी नर्यं ससूव | |
वर्षा जजान वर्षणं रणाय तमु चिन नारी नर्यं ससूव | |
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पर यः सेनानीरध नर्भ्यो अस्तीनः सत्वा गवेषणः स धर्ष्णुः |
पर यः सेनानीरध नर्भ्यो अस्तीनः सत्वा गवेषणः स धर्ष्णुः ॥ |
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नू चित स भरेषते जनो न रेषन मनो यो अस्य घोरमाविवासात | |
नू चित स भरेषते जनो न रेषन मनो यो अस्य घोरमाविवासात | |
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यज्ञैर्य इन्द्रे दधते दुवांसि कषयत स राय रतपा रतेजाः |
यज्ञैर्य इन्द्रे दधते दुवांसि कषयत स राय रतपा रतेजाः ॥ |
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यदिन्द्र पूर्वो अपराय शिक्षन्नयज्ज्यायान कनीयसो देष्णम | |
यदिन्द्र पूर्वो अपराय शिक्षन्नयज्ज्यायान कनीयसो देष्णम | |
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अम्र्त इत पर्यासीत दूरमा चित्र चित्र्यं भरा रयिं नः |
अम्र्त इत पर्यासीत दूरमा चित्र चित्र्यं भरा रयिं नः ॥ |
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यस्त इन्द्र परियो जनो ददाशदसन निरेके अद्रिवः सखा ते | |
यस्त इन्द्र परियो जनो ददाशदसन निरेके अद्रिवः सखा ते | |
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वयं ते अस्यां सुमतौ चनिष्ठाः सयाम वरूथे अघ्नतो नर्पीतौ |
वयं ते अस्यां सुमतौ चनिष्ठाः सयाम वरूथे अघ्नतो नर्पीतौ ॥ |
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एष सतोमो अचिक्रदद वर्षा त उत सतामुर्मघवन्नक्रपिष्ट | |
एष सतोमो अचिक्रदद वर्षा त उत सतामुर्मघवन्नक्रपिष्ट | |
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रायस कामो जरितारं त आगन तवमङग शक्र वस्व आशको नः |
रायस कामो जरितारं त आगन तवमङग शक्र वस्व आशको नः ॥ |
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स न इन्द्र तवयताया इषे धास्त्मना च ये मघवानो जुनन्ति | |
स न इन्द्र तवयताया इषे धास्त्मना च ये मघवानो जुनन्ति | |
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वस्वी षु ते जरित्रे अस्तु शक्तिर्यूयं पात ... |
वस्वी षु ते जरित्रे अस्तु शक्तिर्यूयं पात ... ॥ |
२१:५०, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
उग्रो जज्ञे वीर्याय सवधावाञ्चक्रिरपो नर्यो यत करिष्यन | जग्मिर्युवा नर्षदनमवोभिस्त्राता न इन्द्र एनसो महश्चित ॥ हन्त वर्त्रमिन्द्रः शूशुवानः परावीन नु वीरो जरितारमूती | कर्ता सुदासे अह वा उ लोकं दाता वसु मुहुरा दाशुषे भूत ॥ युध्मो अनर्वा खजक्र्त समद्वा शूरः सत्राषाड जनुषेमषाळ्हः | वयास इन्द्रः पर्तनाः सवोजा अधा विश्वंशत्रूयन्तं जघान ॥ उभे चिदिन्द्र रोदसी महित्वा पप्राथ तविषीभिस्तुविष्मः | नि वज्रमिन्द्रो हरिवान मिमिक्षन समन्धसा मदेषु वाुवोच ॥ वर्षा जजान वर्षणं रणाय तमु चिन नारी नर्यं ससूव | पर यः सेनानीरध नर्भ्यो अस्तीनः सत्वा गवेषणः स धर्ष्णुः ॥ नू चित स भरेषते जनो न रेषन मनो यो अस्य घोरमाविवासात | यज्ञैर्य इन्द्रे दधते दुवांसि कषयत स राय रतपा रतेजाः ॥ यदिन्द्र पूर्वो अपराय शिक्षन्नयज्ज्यायान कनीयसो देष्णम | अम्र्त इत पर्यासीत दूरमा चित्र चित्र्यं भरा रयिं नः ॥ यस्त इन्द्र परियो जनो ददाशदसन निरेके अद्रिवः सखा ते | वयं ते अस्यां सुमतौ चनिष्ठाः सयाम वरूथे अघ्नतो नर्पीतौ ॥ एष सतोमो अचिक्रदद वर्षा त उत सतामुर्मघवन्नक्रपिष्ट | रायस कामो जरितारं त आगन तवमङग शक्र वस्व आशको नः ॥ स न इन्द्र तवयताया इषे धास्त्मना च ये मघवानो जुनन्ति | वस्वी षु ते जरित्रे अस्तु शक्तिर्यूयं पात ... ॥