"ऋग्वेदः सूक्तं ४.२२" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
यन न इन्द्रो जुजुषे यच च वष्टि तन नो महान करति शुष्म्य आ चित | |
यन न इन्द्रो जुजुषे यच च वष्टि तन नो महान करति शुष्म्य आ चित | |
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बरह्म सतोमम मघवा सोमम उक्था यो अश्मानं शवसा बिभ्रद एति |
बरह्म सतोमम मघवा सोमम उक्था यो अश्मानं शवसा बिभ्रद एति ॥ |
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वर्षा वर्षन्धिं चतुरश्रिम अस्यन्न उग्रो बाहुभ्यां नर्तमः शचीवान | |
वर्षा वर्षन्धिं चतुरश्रिम अस्यन्न उग्रो बाहुभ्यां नर्तमः शचीवान | |
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शरिये परुष्णीम उषमाण ऊर्णां यस्याः पर्वाणि सख्याय विव्ये |
शरिये परुष्णीम उषमाण ऊर्णां यस्याः पर्वाणि सख्याय विव्ये ॥ |
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यो देवो देवतमो जायमानो महो वाजेभिर महद्भिश च शुष्मैः | |
यो देवो देवतमो जायमानो महो वाजेभिर महद्भिश च शुष्मैः | |
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दधानो वज्रम बाह्वोर उशन्तं दयाम अमेन रेजयत पर भूम |
दधानो वज्रम बाह्वोर उशन्तं दयाम अमेन रेजयत पर भूम ॥ |
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विश्वा रोधांसि परवतश च पूर्वीर दयौर रष्वाज जनिमन रेजत कषाः | |
विश्वा रोधांसि परवतश च पूर्वीर दयौर रष्वाज जनिमन रेजत कषाः | |
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आ मातरा भरति शुष्म्य आ गोर नर्वत परिज्मन नोनुवन्त वाताः |
आ मातरा भरति शुष्म्य आ गोर नर्वत परिज्मन नोनुवन्त वाताः ॥ |
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ता तू त इन्द्र महतो महानि विश्वेष्व इत सवनेषु परवाच्या | |
ता तू त इन्द्र महतो महानि विश्वेष्व इत सवनेषु परवाच्या | |
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यच छूर धर्ष्णो धर्षता दध्र्ष्वान अहिं वज्रेण शवसाविवेषीः |
यच छूर धर्ष्णो धर्षता दध्र्ष्वान अहिं वज्रेण शवसाविवेषीः ॥ |
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ता तू ते सत्या तुविन्र्म्ण विश्वा पर धेनवः सिस्रते वर्ष्ण ऊध्नः | |
ता तू ते सत्या तुविन्र्म्ण विश्वा पर धेनवः सिस्रते वर्ष्ण ऊध्नः | |
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अधा ह तवद वर्षमणो भियानाः पर सिन्धवो जवसा चक्रमन्त |
अधा ह तवद वर्षमणो भियानाः पर सिन्धवो जवसा चक्रमन्त ॥ |
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अत्राह ते हरिवस ता उ देवीर अवोभिर इन्द्र सतवन्त सवसारः | |
अत्राह ते हरिवस ता उ देवीर अवोभिर इन्द्र सतवन्त सवसारः | |
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यत सीम अनु पर मुचो बद्बधाना दीर्घाम अनु परसितिं सयन्दयध्यै |
यत सीम अनु पर मुचो बद्बधाना दीर्घाम अनु परसितिं सयन्दयध्यै ॥ |
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पिपीळे अंशुर मद्यो न सिन्धुर आ तवा शमी शशमानस्य शक्तिः | |
पिपीळे अंशुर मद्यो न सिन्धुर आ तवा शमी शशमानस्य शक्तिः | |
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अस्मद्र्यक छुशुचानस्य यम्या आशुर न रश्मिं तुव्योजसं गोः |
अस्मद्र्यक छुशुचानस्य यम्या आशुर न रश्मिं तुव्योजसं गोः ॥ |
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अस्मे वर्षिष्ठा कर्णुहि जयेष्ठा नर्म्णानि सत्रा सहुरे सहांसि | |
अस्मे वर्षिष्ठा कर्णुहि जयेष्ठा नर्म्णानि सत्रा सहुरे सहांसि | |
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अस्मभ्यं वर्त्रा सुहनानि रन्धि जहि वधर वनुषो मर्त्यस्य |
अस्मभ्यं वर्त्रा सुहनानि रन्धि जहि वधर वनुषो मर्त्यस्य ॥ |
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अस्माकम इत सु शर्णुहि तवम इन्द्रास्मभ्यं चित्रां उप माहि वाजान | |
अस्माकम इत सु शर्णुहि तवम इन्द्रास्मभ्यं चित्रां उप माहि वाजान | |
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अस्मभ्यं विश्वा इषणः पुरंधीर अस्माकं सु मघवन बोधि गोदाः |
अस्मभ्यं विश्वा इषणः पुरंधीर अस्माकं सु मघवन बोधि गोदाः ॥ |
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नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | |
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अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः |
अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥ |
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*[[ऋग्वेद:]] |
*[[ऋग्वेद:]] |
१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
यन न इन्द्रो जुजुषे यच च वष्टि तन नो महान करति शुष्म्य आ चित | बरह्म सतोमम मघवा सोमम उक्था यो अश्मानं शवसा बिभ्रद एति ॥ वर्षा वर्षन्धिं चतुरश्रिम अस्यन्न उग्रो बाहुभ्यां नर्तमः शचीवान | शरिये परुष्णीम उषमाण ऊर्णां यस्याः पर्वाणि सख्याय विव्ये ॥ यो देवो देवतमो जायमानो महो वाजेभिर महद्भिश च शुष्मैः | दधानो वज्रम बाह्वोर उशन्तं दयाम अमेन रेजयत पर भूम ॥ विश्वा रोधांसि परवतश च पूर्वीर दयौर रष्वाज जनिमन रेजत कषाः | आ मातरा भरति शुष्म्य आ गोर नर्वत परिज्मन नोनुवन्त वाताः ॥ ता तू त इन्द्र महतो महानि विश्वेष्व इत सवनेषु परवाच्या | यच छूर धर्ष्णो धर्षता दध्र्ष्वान अहिं वज्रेण शवसाविवेषीः ॥
ता तू ते सत्या तुविन्र्म्ण विश्वा पर धेनवः सिस्रते वर्ष्ण ऊध्नः | अधा ह तवद वर्षमणो भियानाः पर सिन्धवो जवसा चक्रमन्त ॥ अत्राह ते हरिवस ता उ देवीर अवोभिर इन्द्र सतवन्त सवसारः | यत सीम अनु पर मुचो बद्बधाना दीर्घाम अनु परसितिं सयन्दयध्यै ॥ पिपीळे अंशुर मद्यो न सिन्धुर आ तवा शमी शशमानस्य शक्तिः | अस्मद्र्यक छुशुचानस्य यम्या आशुर न रश्मिं तुव्योजसं गोः ॥ अस्मे वर्षिष्ठा कर्णुहि जयेष्ठा नर्म्णानि सत्रा सहुरे सहांसि | अस्मभ्यं वर्त्रा सुहनानि रन्धि जहि वधर वनुषो मर्त्यस्य ॥ अस्माकम इत सु शर्णुहि तवम इन्द्रास्मभ्यं चित्रां उप माहि वाजान | अस्मभ्यं विश्वा इषणः पुरंधीर अस्माकं सु मघवन बोधि गोदाः ॥ नू षटुत इन्द्र नू गर्णान इषं जरित्रे नद्यो न पीपेः | अकारि ते हरिवो बरह्म नव्यं धिया सयाम रथ्यः सदासाः ॥