"ऋग्वेदः सूक्तं १.१३९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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अस्तु शरौषट पुरो अग्नीं धिया दध आ नु तच छर्धो दिव्यं वर्णीमह इन्द्रवायू वर्णीमहे | |
अस्तु शरौषट पुरो अग्नीं धिया दध आ नु तच छर्धो दिव्यं वर्णीमह इन्द्रवायू वर्णीमहे | |
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यद ध कराणा विवस्वति नाभा संदायि नव्यसी | |
यद ध कराणा विवस्वति नाभा संदायि नव्यसी | |
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अध पर सू न उप यन्तु धीतयो देवां अछा न धीतयः |
अध पर सू न उप यन्तु धीतयो देवां अछा न धीतयः ॥ |
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यद ध तयन मित्रावरुणाव रताद अध्य आददाथे अन्र्तं सवेन मन्युना दक्षस्य सवेन मन्युना | |
यद ध तयन मित्रावरुणाव रताद अध्य आददाथे अन्र्तं सवेन मन्युना दक्षस्य सवेन मन्युना | |
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युवोर इत्थाधि सद्मस्व अपश्याम हिरण्ययम |
युवोर इत्थाधि सद्मस्व अपश्याम हिरण्ययम ॥ |
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धीभिश चन मनसा सवेभिर अक्षभिः सोमस्य सवेभिर अक्षभिः |
धीभिश चन मनसा सवेभिर अक्षभिः सोमस्य सवेभिर अक्षभिः ॥ |
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युवां सतोमेभिर देवयन्तो अश्विनाश्रावयन्त इव शलोकम आयवो युवां हव्याभ्य आयवः | |
युवां सतोमेभिर देवयन्तो अश्विनाश्रावयन्त इव शलोकम आयवो युवां हव्याभ्य आयवः | |
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युवोर विश्वा अधि शरियः पर्क्षश च विश्ववेदसा | |
युवोर विश्वा अधि शरियः पर्क्षश च विश्ववेदसा | |
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परुषायन्ते वाम पवयो हिरण्यये रथे दस्रा हिरण्यये |
परुषायन्ते वाम पवयो हिरण्यये रथे दस्रा हिरण्यये ॥ |
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अचेति दस्रा वय नाकम रण्वथो युञ्जते वां रथयुजो दिविष्टिष्व अध्वस्मानो दिविष्टिषु | |
अचेति दस्रा वय नाकम रण्वथो युञ्जते वां रथयुजो दिविष्टिष्व अध्वस्मानो दिविष्टिषु | |
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अधि वां सथाम वन्धुरे रथे दस्रा हिरण्यये | |
अधि वां सथाम वन्धुरे रथे दस्रा हिरण्यये | |
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पथेव यन्ताव अनुशासता रजो ऽञजसा शासता रजः |
पथेव यन्ताव अनुशासता रजो ऽञजसा शासता रजः ॥ |
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शचीभिर नः शचीवसू दिवा नक्तं दशस्यतम | |
शचीभिर नः शचीवसू दिवा नक्तं दशस्यतम | |
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मा वां रातिर उप दसत कदा चनास्मद रातिः कदा चन |
मा वां रातिर उप दसत कदा चनास्मद रातिः कदा चन ॥ |
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वर्षन्न इन्द्र वर्षपाणास इन्दव इमे सुता अद्रिषुतास उद्भिदस तुभ्यं सुतास उद्भिदः | |
वर्षन्न इन्द्र वर्षपाणास इन्दव इमे सुता अद्रिषुतास उद्भिदस तुभ्यं सुतास उद्भिदः | |
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ते तवा मन्दन्तु दावने महे चित्राय राधसे | |
ते तवा मन्दन्तु दावने महे चित्राय राधसे | |
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गीर्भिर गिर्वाह सतवमान आ गहि सुम्र्ळीको न आ गहि |
गीर्भिर गिर्वाह सतवमान आ गहि सुम्र्ळीको न आ गहि ॥ |
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ओ षू णो अग्ने शर्णुहि तवम ईळितो देवेभ्यो बरवसि यज्ञियेभ्यो राजभ्यो यज्ञियेभ्यः | |
ओ षू णो अग्ने शर्णुहि तवम ईळितो देवेभ्यो बरवसि यज्ञियेभ्यो राजभ्यो यज्ञियेभ्यः | |
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यद ध तयाम अङगिरोभ्यो धेनुं देवा अदत्तन | |
यद ध तयाम अङगिरोभ्यो धेनुं देवा अदत्तन | |
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वि तां दुह्रे अर्यमा कर्तरी सचां एष तां वेद मे सचा |
वि तां दुह्रे अर्यमा कर्तरी सचां एष तां वेद मे सचा ॥ |
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मो षु वो अस्मद अभि तानि पौंस्या सना भूवन दयुम्नानि मोत जारिषुर अस्मत पुरोत जारिषुः | |
मो षु वो अस्मद अभि तानि पौंस्या सना भूवन दयुम्नानि मोत जारिषुर अस्मत पुरोत जारिषुः | |
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यद वश चित्रं युगे-युगे नव्यं घोषाद अमर्त्यम | |
यद वश चित्रं युगे-युगे नव्यं घोषाद अमर्त्यम | |
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अस्मासु तन मरुतो यच च दुष्टरं दिध्र्ता यच च दुष्टरम |
अस्मासु तन मरुतो यच च दुष्टरं दिध्र्ता यच च दुष्टरम ॥ |
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दध्यङ ह मे जनुषम पूर्वो अङगिराः परियमेधः कण्वो अत्रिर मनुर विदुस ते मे पूर्वे मनुर विदुः | |
दध्यङ ह मे जनुषम पूर्वो अङगिराः परियमेधः कण्वो अत्रिर मनुर विदुस ते मे पूर्वे मनुर विदुः | |
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तेषां देवेष्व आयतिर अस्माकं तेषु नाभयः | |
तेषां देवेष्व आयतिर अस्माकं तेषु नाभयः | |
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तेषाम पदेन मह्य आ नमे गिरेन्द्राग्नी आ नमे गिरा |
तेषाम पदेन मह्य आ नमे गिरेन्द्राग्नी आ नमे गिरा ॥ |
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होता यक्षद वनिनो वन्त वार्यम बर्हस्पतिर यजति वेन उक्षभिः पुरुवारेभिर उक्षभिः | |
होता यक्षद वनिनो वन्त वार्यम बर्हस्पतिर यजति वेन उक्षभिः पुरुवारेभिर उक्षभिः | |
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जग्र्भ्मा दूरादिशं शलोकम अद्रेर अध तमना | |
जग्र्भ्मा दूरादिशं शलोकम अद्रेर अध तमना | |
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अधारयद अररिन्दानि सुक्रतुः पुरू सद्मानि सुक्रतुः |
अधारयद अररिन्दानि सुक्रतुः पुरू सद्मानि सुक्रतुः ॥ |
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ये देवासो दिव्य एकादश सथ पर्थिव्याम अध्य एकादश सथ | |
ये देवासो दिव्य एकादश सथ पर्थिव्याम अध्य एकादश सथ | |
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अप्सुक्षितो महिनैकादश सथ ते देवासो यज्ञम इमं जुषध्वम |
अप्सुक्षितो महिनैकादश सथ ते देवासो यज्ञम इमं जुषध्वम ॥ |
१८:५८, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
अस्तु शरौषट पुरो अग्नीं धिया दध आ नु तच छर्धो दिव्यं वर्णीमह इन्द्रवायू वर्णीमहे | यद ध कराणा विवस्वति नाभा संदायि नव्यसी | अध पर सू न उप यन्तु धीतयो देवां अछा न धीतयः ॥ यद ध तयन मित्रावरुणाव रताद अध्य आददाथे अन्र्तं सवेन मन्युना दक्षस्य सवेन मन्युना | युवोर इत्थाधि सद्मस्व अपश्याम हिरण्ययम ॥ धीभिश चन मनसा सवेभिर अक्षभिः सोमस्य सवेभिर अक्षभिः ॥ युवां सतोमेभिर देवयन्तो अश्विनाश्रावयन्त इव शलोकम आयवो युवां हव्याभ्य आयवः | युवोर विश्वा अधि शरियः पर्क्षश च विश्ववेदसा | परुषायन्ते वाम पवयो हिरण्यये रथे दस्रा हिरण्यये ॥ अचेति दस्रा वय नाकम रण्वथो युञ्जते वां रथयुजो दिविष्टिष्व अध्वस्मानो दिविष्टिषु | अधि वां सथाम वन्धुरे रथे दस्रा हिरण्यये | पथेव यन्ताव अनुशासता रजो ऽञजसा शासता रजः ॥ शचीभिर नः शचीवसू दिवा नक्तं दशस्यतम | मा वां रातिर उप दसत कदा चनास्मद रातिः कदा चन ॥ वर्षन्न इन्द्र वर्षपाणास इन्दव इमे सुता अद्रिषुतास उद्भिदस तुभ्यं सुतास उद्भिदः | ते तवा मन्दन्तु दावने महे चित्राय राधसे | गीर्भिर गिर्वाह सतवमान आ गहि सुम्र्ळीको न आ गहि ॥ ओ षू णो अग्ने शर्णुहि तवम ईळितो देवेभ्यो बरवसि यज्ञियेभ्यो राजभ्यो यज्ञियेभ्यः | यद ध तयाम अङगिरोभ्यो धेनुं देवा अदत्तन | वि तां दुह्रे अर्यमा कर्तरी सचां एष तां वेद मे सचा ॥ मो षु वो अस्मद अभि तानि पौंस्या सना भूवन दयुम्नानि मोत जारिषुर अस्मत पुरोत जारिषुः | यद वश चित्रं युगे-युगे नव्यं घोषाद अमर्त्यम | अस्मासु तन मरुतो यच च दुष्टरं दिध्र्ता यच च दुष्टरम ॥ दध्यङ ह मे जनुषम पूर्वो अङगिराः परियमेधः कण्वो अत्रिर मनुर विदुस ते मे पूर्वे मनुर विदुः | तेषां देवेष्व आयतिर अस्माकं तेषु नाभयः | तेषाम पदेन मह्य आ नमे गिरेन्द्राग्नी आ नमे गिरा ॥ होता यक्षद वनिनो वन्त वार्यम बर्हस्पतिर यजति वेन उक्षभिः पुरुवारेभिर उक्षभिः | जग्र्भ्मा दूरादिशं शलोकम अद्रेर अध तमना | अधारयद अररिन्दानि सुक्रतुः पुरू सद्मानि सुक्रतुः ॥ ये देवासो दिव्य एकादश सथ पर्थिव्याम अध्य एकादश सथ | अप्सुक्षितो महिनैकादश सथ ते देवासो यज्ञम इमं जुषध्वम ॥