"ऋग्वेदः सूक्तं १.१०४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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योनिष ट इन्द्र निषदे अकारि तमा नि षीद सवानो नार्वा | |
योनिष ट इन्द्र निषदे अकारि तमा नि षीद सवानो नार्वा | |
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विमुच्य वयो.अवसायाश्वान दोषा वस्तोर्वहीयसः परपित्वे |
विमुच्य वयो.अवसायाश्वान दोषा वस्तोर्वहीयसः परपित्वे ॥ |
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ओ तये नर इन्द्रमूतये गुर्नू चित तान सद्यो अध्वनो जगम्यात | |
ओ तये नर इन्द्रमूतये गुर्नू चित तान सद्यो अध्वनो जगम्यात | |
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देवासो मन्युं दासस्य शचम्नन ते न आ वक्षन सुविताय वर्णम |
देवासो मन्युं दासस्य शचम्नन ते न आ वक्षन सुविताय वर्णम ॥ |
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अव तमन भरते केतवेदा अव तमना भरते फेनमुदन | |
अव तमन भरते केतवेदा अव तमना भरते फेनमुदन | |
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कषीरेण सनातः कुयवस्य योषे हते ते सयातां परवणे शिफायाः |
कषीरेण सनातः कुयवस्य योषे हते ते सयातां परवणे शिफायाः ॥ |
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युयोप नाभिरुपरस्यायोः पर पूर्वाभिस्तिरते राष्टि शूरः | |
युयोप नाभिरुपरस्यायोः पर पूर्वाभिस्तिरते राष्टि शूरः | |
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अञ्जसी कुलिशी वीरपत्नी पयो हिन्वाना उदभिर्भरन्ते |
अञ्जसी कुलिशी वीरपत्नी पयो हिन्वाना उदभिर्भरन्ते ॥ |
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परति यत सया नीथादर्शि दस्योरोको नाछा सदनं जानती गात | |
परति यत सया नीथादर्शि दस्योरोको नाछा सदनं जानती गात | |
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अध समा नो मघवञ्चर्क्र्तादिन मा नो मघेव निष्षपी परा दाः |
अध समा नो मघवञ्चर्क्र्तादिन मा नो मघेव निष्षपी परा दाः ॥ |
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स तवं न इन्द्र सूर्ये सो अप्स्वनागास्त्व आ भज जीवशंसे | |
स तवं न इन्द्र सूर्ये सो अप्स्वनागास्त्व आ भज जीवशंसे | |
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मान्तरां भुजमा रीरिषो नः शरद्धितं ते महत इन्द्रियाय |
मान्तरां भुजमा रीरिषो नः शरद्धितं ते महत इन्द्रियाय ॥ |
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अधा मन्ये शरत ते अस्मा अधायि वर्षा चोदस्व महते धनाय | |
अधा मन्ये शरत ते अस्मा अधायि वर्षा चोदस्व महते धनाय | |
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मा नो अक्र्ते पुरुहूत योनाविन्द्र कषुध्यद्भ्यो वय आसुतिं दाः |
मा नो अक्र्ते पुरुहूत योनाविन्द्र कषुध्यद्भ्यो वय आसुतिं दाः ॥ |
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मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः परिया भोजनानि पर मोषीः | |
मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः परिया भोजनानि पर मोषीः | |
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आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन मा नः पात्रा भेत सहजानुषाणि |
आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन मा नः पात्रा भेत सहजानुषाणि ॥ |
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अर्वां एहि सोमकामं तवाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय | |
अर्वां एहि सोमकामं तवाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय | |
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उरुव्यचा जथर आ वर्षस्व पितेव नः शर्णुहि हूयमानः |
उरुव्यचा जथर आ वर्षस्व पितेव नः शर्णुहि हूयमानः ॥ |
१८:५७, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
योनिष ट इन्द्र निषदे अकारि तमा नि षीद सवानो नार्वा | विमुच्य वयो.अवसायाश्वान दोषा वस्तोर्वहीयसः परपित्वे ॥ ओ तये नर इन्द्रमूतये गुर्नू चित तान सद्यो अध्वनो जगम्यात | देवासो मन्युं दासस्य शचम्नन ते न आ वक्षन सुविताय वर्णम ॥ अव तमन भरते केतवेदा अव तमना भरते फेनमुदन | कषीरेण सनातः कुयवस्य योषे हते ते सयातां परवणे शिफायाः ॥ युयोप नाभिरुपरस्यायोः पर पूर्वाभिस्तिरते राष्टि शूरः | अञ्जसी कुलिशी वीरपत्नी पयो हिन्वाना उदभिर्भरन्ते ॥ परति यत सया नीथादर्शि दस्योरोको नाछा सदनं जानती गात | अध समा नो मघवञ्चर्क्र्तादिन मा नो मघेव निष्षपी परा दाः ॥ स तवं न इन्द्र सूर्ये सो अप्स्वनागास्त्व आ भज जीवशंसे | मान्तरां भुजमा रीरिषो नः शरद्धितं ते महत इन्द्रियाय ॥ अधा मन्ये शरत ते अस्मा अधायि वर्षा चोदस्व महते धनाय | मा नो अक्र्ते पुरुहूत योनाविन्द्र कषुध्यद्भ्यो वय आसुतिं दाः ॥ मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा नः परिया भोजनानि पर मोषीः | आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन मा नः पात्रा भेत सहजानुषाणि ॥ अर्वां एहि सोमकामं तवाहुरयं सुतस्तस्य पिबा मदाय | उरुव्यचा जथर आ वर्षस्व पितेव नः शर्णुहि हूयमानः ॥