"ऋग्वेदः सूक्तं १.९६" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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स परत्नथा सहसा जायमानः सद्यः काव्यानि बळ अधत्त विश्वा | |
स परत्नथा सहसा जायमानः सद्यः काव्यानि बळ अधत्त विश्वा | |
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अपश्च मित्रं धिषणा च साधन देवा अग्निन्धारयन दरविणोदाम |
अपश्च मित्रं धिषणा च साधन देवा अग्निन्धारयन दरविणोदाम ॥ |
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स पूर्वया निविदा कव्यतायोरिमाः परजा अजनयन मनूनाम | |
स पूर्वया निविदा कव्यतायोरिमाः परजा अजनयन मनूनाम | |
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विवस्वता चक्षसा दयामपश्च देवा अ. ध. द. |
विवस्वता चक्षसा दयामपश्च देवा अ. ध. द. ॥ |
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तमीळत परथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुतं रञ्जसानम | |
तमीळत परथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुतं रञ्जसानम | |
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ऊर्जः पुत्रं भरतं सर्प्रदानुं देवा ... |
ऊर्जः पुत्रं भरतं सर्प्रदानुं देवा ... ॥ |
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स मातरिश्वा पुरुवारपुष्टिर्विदद गातुं तनयाय सवर्वित | |
स मातरिश्वा पुरुवारपुष्टिर्विदद गातुं तनयाय सवर्वित | |
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विशां गोपा जनिता रोदस्योर्देवा ... |
विशां गोपा जनिता रोदस्योर्देवा ... ॥ |
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नक्तोषासा वर्णमामेम्याने धापयेते शिशुमेकं समीची | |
नक्तोषासा वर्णमामेम्याने धापयेते शिशुमेकं समीची | |
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दयावाक्षामा रुक्मो अन्तर्वि भाति देवा ... |
दयावाक्षामा रुक्मो अन्तर्वि भाति देवा ... ॥ |
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रायो बुध्नः संगमनो वसूनां यज्ञस्य केतुर्मन्मसाधनो वेः | |
रायो बुध्नः संगमनो वसूनां यज्ञस्य केतुर्मन्मसाधनो वेः | |
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अम्र्तत्वं रक्षमाणास एनं देवा ... |
अम्र्तत्वं रक्षमाणास एनं देवा ... ॥ |
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नू च पुरा च सदनं रयीणां जातस्य च जायमानस्य च कषाम | |
नू च पुरा च सदनं रयीणां जातस्य च जायमानस्य च कषाम | |
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सतश्च गोपां भवतश्च भूरेर्देवा ... |
सतश्च गोपां भवतश्च भूरेर्देवा ... ॥ |
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दरविणोदा दरविणसस्तुरस्य दरविणोदाः सनरस्य पर यंसत | |
दरविणोदा दरविणसस्तुरस्य दरविणोदाः सनरस्य पर यंसत | |
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दरविणोदा वीरवतीमिषं नो दरविणोदा रसते दीर्घमायुः |
दरविणोदा वीरवतीमिषं नो दरविणोदा रसते दीर्घमायुः ॥ |
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एवा नो अग्ने समिधा वर्धानो रेवत पावक शरवसे वि भाहि |
एवा नो अग्ने समिधा वर्धानो रेवत पावक शरवसे वि भाहि ॥ |
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तन नो मित्रो वरुणो मामहन्ताम अदितिः सिन्धुः पर्थ्विवी उतो दयौः |
तन नो मित्रो वरुणो मामहन्ताम अदितिः सिन्धुः पर्थ्विवी उतो दयौः ॥ |
१८:५७, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
स परत्नथा सहसा जायमानः सद्यः काव्यानि बळ अधत्त विश्वा | अपश्च मित्रं धिषणा च साधन देवा अग्निन्धारयन दरविणोदाम ॥ स पूर्वया निविदा कव्यतायोरिमाः परजा अजनयन मनूनाम | विवस्वता चक्षसा दयामपश्च देवा अ. ध. द. ॥ तमीळत परथमं यज्ञसाधं विश आरीराहुतं रञ्जसानम | ऊर्जः पुत्रं भरतं सर्प्रदानुं देवा ... ॥ स मातरिश्वा पुरुवारपुष्टिर्विदद गातुं तनयाय सवर्वित | विशां गोपा जनिता रोदस्योर्देवा ... ॥ नक्तोषासा वर्णमामेम्याने धापयेते शिशुमेकं समीची | दयावाक्षामा रुक्मो अन्तर्वि भाति देवा ... ॥ रायो बुध्नः संगमनो वसूनां यज्ञस्य केतुर्मन्मसाधनो वेः | अम्र्तत्वं रक्षमाणास एनं देवा ... ॥ नू च पुरा च सदनं रयीणां जातस्य च जायमानस्य च कषाम | सतश्च गोपां भवतश्च भूरेर्देवा ... ॥ दरविणोदा दरविणसस्तुरस्य दरविणोदाः सनरस्य पर यंसत | दरविणोदा वीरवतीमिषं नो दरविणोदा रसते दीर्घमायुः ॥ एवा नो अग्ने समिधा वर्धानो रेवत पावक शरवसे वि भाहि ॥ तन नो मित्रो वरुणो मामहन्ताम अदितिः सिन्धुः पर्थ्विवी उतो दयौः ॥