"ऋग्वेदः सूक्तं १.८४" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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असावि सोम इन्द्र ते शविष्ठ धर्ष्णवा गहि | |
असावि सोम इन्द्र ते शविष्ठ धर्ष्णवा गहि | |
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आ तवा पर्णक्त्विन्द्रियं रजः सूर्यो न रश्मिभिः |
आ तवा पर्णक्त्विन्द्रियं रजः सूर्यो न रश्मिभिः ॥ |
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इन्द्रमिद धरी वहतो.अप्रतिध्र्ष्टशवसम | |
इन्द्रमिद धरी वहतो.अप्रतिध्र्ष्टशवसम | |
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रषीणां च सतुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम |
रषीणां च सतुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम ॥ |
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आ तिष्ठ वर्त्रहन रथं युक्ता ते बरह्मणा हरी | |
आ तिष्ठ वर्त्रहन रथं युक्ता ते बरह्मणा हरी | |
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अर्वाचीनं सु ते मनो गरावा कर्णोतु वग्नुना |
अर्वाचीनं सु ते मनो गरावा कर्णोतु वग्नुना ॥ |
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इममिन्द्र सुतं पिब जयेष्ठममर्त्यं मदम | |
इममिन्द्र सुतं पिब जयेष्ठममर्त्यं मदम | |
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शुक्रस्य तवाभ्यक्षरन धारा रतस्य सादने |
शुक्रस्य तवाभ्यक्षरन धारा रतस्य सादने ॥ |
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इन्द्राय नूनमर्चतोक्थानि च बरवीतन | |
इन्द्राय नूनमर्चतोक्थानि च बरवीतन | |
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सुता अमत्सुरिन्दवो जयेष्ठं नमस्यता सहः |
सुता अमत्सुरिन्दवो जयेष्ठं नमस्यता सहः ॥ |
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नकिष टवद रथीतरो हरी यदिन्द्र यछसे | |
नकिष टवद रथीतरो हरी यदिन्द्र यछसे | |
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नकिष टवानु मज्मना नकिः सवश्व आनशे |
नकिष टवानु मज्मना नकिः सवश्व आनशे ॥ |
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य एक इद विदयते वसु मर्ताय दाशुषे | |
य एक इद विदयते वसु मर्ताय दाशुषे | |
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ईशानो अप्रतिष्कुत इन्द्रो अङग |
ईशानो अप्रतिष्कुत इन्द्रो अङग ॥ |
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कदा मर्तमराधसं पदा कषुम्पमिव सफुरत | |
कदा मर्तमराधसं पदा कषुम्पमिव सफुरत | |
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कदा नःशुश्रवद गिर इन्द्रो अङग |
कदा नःशुश्रवद गिर इन्द्रो अङग ॥ |
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यश्चिद धि तवा बहुभ्य आ सुतावानाविवासति | |
यश्चिद धि तवा बहुभ्य आ सुतावानाविवासति | |
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उग्रं तत पत्यते शव इन्द्रो अङग |
उग्रं तत पत्यते शव इन्द्रो अङग ॥ |
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सवादोरित्था विषूवतो मध्वः पिबन्ति गौर्यः | |
सवादोरित्था विषूवतो मध्वः पिबन्ति गौर्यः | |
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या इन्द्रेण सयावरीर्व्र्ष्णा मदन्ति शोभसे वस्वीरनु सवराज्यम |
या इन्द्रेण सयावरीर्व्र्ष्णा मदन्ति शोभसे वस्वीरनु सवराज्यम ॥ |
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ता अस्य पर्शनायुवः सोमं शरीणन्ति पर्श्नयः | |
ता अस्य पर्शनायुवः सोमं शरीणन्ति पर्श्नयः | |
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परिया इन्द्रस्य धेनवो वज्रं हिन्वन्ति सायकं वस्वीर... |
परिया इन्द्रस्य धेनवो वज्रं हिन्वन्ति सायकं वस्वीर... ॥ |
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ता अस्य नमसा सहः सपर्यन्ति परचेतसः | |
ता अस्य नमसा सहः सपर्यन्ति परचेतसः | |
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वरतान्यस्य सश्चिरे पुरूणि पूर्वचित्तये वस्वीर... |
वरतान्यस्य सश्चिरे पुरूणि पूर्वचित्तये वस्वीर... ॥ |
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इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्व्र्त्राण्यप्रतिष्कुतः | |
इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्व्र्त्राण्यप्रतिष्कुतः | |
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जघान नवतीर्नव |
जघान नवतीर्नव ॥ |
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इछन्नश्वस्य यच्छिरः पर्वतेष्वपश्रितम | |
इछन्नश्वस्य यच्छिरः पर्वतेष्वपश्रितम | |
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तद विदच्छर्यणावति |
तद विदच्छर्यणावति ॥ |
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अत्राह गोरमन्वत नाम तवष्टुरपीच्यम | |
अत्राह गोरमन्वत नाम तवष्टुरपीच्यम | |
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इत्था चन्द्रमसो गर्हे |
इत्था चन्द्रमसो गर्हे ॥ |
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को अद्य युङकते धुरि गा रतस्य शिमीवतो भामिनो दुर्ह्र्णायून | |
को अद्य युङकते धुरि गा रतस्य शिमीवतो भामिनो दुर्ह्र्णायून | |
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असन्निषून हर्त्स्वसो मयोभून य एषां भर्त्यां रणधत स जीवात |
असन्निषून हर्त्स्वसो मयोभून य एषां भर्त्यां रणधत स जीवात ॥ |
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क ईषते तुज्यते को बिभाय को मंसते सन्तमिन्द्रं को अन्ति | |
क ईषते तुज्यते को बिभाय को मंसते सन्तमिन्द्रं को अन्ति | |
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कस्तोकाय क इभायोत राये.अधि बरवत तन्वे को जनाय |
कस्तोकाय क इभायोत राये.अधि बरवत तन्वे को जनाय ॥ |
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को अग्निमीट्टे हविषा घर्तेन सरुचा यजाता रतुभिर्ध्रुवेभिः | |
को अग्निमीट्टे हविषा घर्तेन सरुचा यजाता रतुभिर्ध्रुवेभिः | |
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कस्मै देवा आ वहानाशु होम को मंसते वीतिहोत्रः सुदेवः |
कस्मै देवा आ वहानाशु होम को मंसते वीतिहोत्रः सुदेवः ॥ |
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तवमङग पर शंसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम | |
तवमङग पर शंसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम | |
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न तवदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र बरवीमि ते वचः |
न तवदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र बरवीमि ते वचः ॥ |
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मा ते राधांसि मा त ऊतयो वसो.अस्मान कदा चना दभन | |
मा ते राधांसि मा त ऊतयो वसो.अस्मान कदा चना दभन | |
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विश्वा च न उपमिमीहि मानुष वसूनि चर्षणिभ्य आ |
विश्वा च न उपमिमीहि मानुष वसूनि चर्षणिभ्य आ ॥ |
१८:५६, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
असावि सोम इन्द्र ते शविष्ठ धर्ष्णवा गहि | आ तवा पर्णक्त्विन्द्रियं रजः सूर्यो न रश्मिभिः ॥ इन्द्रमिद धरी वहतो.अप्रतिध्र्ष्टशवसम | रषीणां च सतुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम ॥ आ तिष्ठ वर्त्रहन रथं युक्ता ते बरह्मणा हरी | अर्वाचीनं सु ते मनो गरावा कर्णोतु वग्नुना ॥ इममिन्द्र सुतं पिब जयेष्ठममर्त्यं मदम | शुक्रस्य तवाभ्यक्षरन धारा रतस्य सादने ॥ इन्द्राय नूनमर्चतोक्थानि च बरवीतन | सुता अमत्सुरिन्दवो जयेष्ठं नमस्यता सहः ॥ नकिष टवद रथीतरो हरी यदिन्द्र यछसे | नकिष टवानु मज्मना नकिः सवश्व आनशे ॥ य एक इद विदयते वसु मर्ताय दाशुषे | ईशानो अप्रतिष्कुत इन्द्रो अङग ॥ कदा मर्तमराधसं पदा कषुम्पमिव सफुरत | कदा नःशुश्रवद गिर इन्द्रो अङग ॥ यश्चिद धि तवा बहुभ्य आ सुतावानाविवासति | उग्रं तत पत्यते शव इन्द्रो अङग ॥ सवादोरित्था विषूवतो मध्वः पिबन्ति गौर्यः | या इन्द्रेण सयावरीर्व्र्ष्णा मदन्ति शोभसे वस्वीरनु सवराज्यम ॥ ता अस्य पर्शनायुवः सोमं शरीणन्ति पर्श्नयः | परिया इन्द्रस्य धेनवो वज्रं हिन्वन्ति सायकं वस्वीर... ॥ ता अस्य नमसा सहः सपर्यन्ति परचेतसः | वरतान्यस्य सश्चिरे पुरूणि पूर्वचित्तये वस्वीर... ॥ इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्व्र्त्राण्यप्रतिष्कुतः | जघान नवतीर्नव ॥ इछन्नश्वस्य यच्छिरः पर्वतेष्वपश्रितम | तद विदच्छर्यणावति ॥ अत्राह गोरमन्वत नाम तवष्टुरपीच्यम | इत्था चन्द्रमसो गर्हे ॥ को अद्य युङकते धुरि गा रतस्य शिमीवतो भामिनो दुर्ह्र्णायून | असन्निषून हर्त्स्वसो मयोभून य एषां भर्त्यां रणधत स जीवात ॥ क ईषते तुज्यते को बिभाय को मंसते सन्तमिन्द्रं को अन्ति | कस्तोकाय क इभायोत राये.अधि बरवत तन्वे को जनाय ॥ को अग्निमीट्टे हविषा घर्तेन सरुचा यजाता रतुभिर्ध्रुवेभिः | कस्मै देवा आ वहानाशु होम को मंसते वीतिहोत्रः सुदेवः ॥ तवमङग पर शंसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम | न तवदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र बरवीमि ते वचः ॥ मा ते राधांसि मा त ऊतयो वसो.अस्मान कदा चना दभन | विश्वा च न उपमिमीहि मानुष वसूनि चर्षणिभ्य आ ॥