"ब्रह्मपुराणम्/अध्यायः १७४" इत्यस्य संस्करणे भेदः

विकिस्रोतः तः
ब्रह्मपुराणम् using AWB
ब्रह्मपुराणम् using AWB
 
पङ्क्तिः ८: पङ्क्तिः ८:
| notes =
| notes =
}}
}}
{{ब्रह्मपुराणम्}}
<poem>
<poem>
'''गंगासागरसंगमवर्णनम्
'''गंगासागरसंगमवर्णनम्

११:२०, १६ जनवरी २०१६ समयस्य संस्करणम्

← अध्यायः १७३ ब्रह्मपुराणम्
अध्यायः १७४
वेदव्यासः
अध्यायः १७५ →
  1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८
  109. अध्यायः १०९
  110. अध्यायः ११०
  111. अध्यायः १११
  112. अध्यायः ११२
  113. अध्यायः ११३
  114. अध्यायः ११४
  115. अध्यायः ११५
  116. अध्यायः ११६
  117. अध्यायः ११७
  118. अध्यायः ११८
  119. अध्यायः ११९
  120. अध्यायः १२०
  121. अध्यायः १२१
  122. अध्यायः १२२
  123. अध्यायः १२३
  124. अध्यायः १२४
  125. अध्यायः १२५
  126. अध्यायः १२६
  127. अध्यायः १२७
  128. अध्यायः १२८
  129. अध्यायः १२९
  130. अध्यायः १३०
  131. अध्यायः १३१
  132. अध्यायः १३२
  133. अध्यायः १३३
  134. अध्यायः १३४
  135. अध्यायः १३५
  136. अध्यायः १३६
  137. अध्यायः १३७
  138. अध्यायः १३८
  139. अध्यायः १३९
  140. अध्यायः १४०
  141. अध्यायः १४१
  142. अध्यायः १४२
  143. अध्यायः १४३
  144. अध्यायः १४४
  145. अध्यायः १४५
  146. अध्यायः १४६
  147. अध्यायः १४७
  148. अध्यायः १४८
  149. अध्यायः १४९
  150. अध्यायः १५०
  151. अध्यायः १५१
  152. अध्यायः १५२
  153. अध्यायः १५३
  154. अध्यायः १५४
  155. अध्यायः १५५
  156. अध्यायः १५६
  157. अध्यायः १५७
  158. अध्यायः १५८
  159. अध्यायः १५९
  160. अध्यायः १६०
  161. अध्यायः १६१
  162. अध्यायः १६२
  163. अध्यायः १६३
  164. अध्यायः १६४
  165. अध्यायः १६५
  166. अध्यायः १६६
  167. अध्यायः १६७
  168. अध्यायः १६८
  169. अध्यायः १६९
  170. अध्यायः १७०
  171. अध्यायः १७१
  172. अध्यायः १७२
  173. अध्यायः १७३
  174. अध्यायः १७४
  175. अध्यायः १७५
  176. अध्यायः १७६
  177. अध्यायः १७७
  178. अध्यायः १७८
  179. अध्यायः १७९
  180. अध्यायः १८०
  181. अध्यायः १८१
  182. अध्यायः १८२
  183. अध्यायः १८३
  184. अध्यायः १८४
  185. अध्यायः १८५
  186. अध्यायः १८६
  187. अध्यायः १८७
  188. अध्यायः १८८
  189. अध्यायः १८९
  190. अध्यायः १९०
  191. अध्यायः १९१
  192. अध्यायः १९२
  193. अध्यायः १९३
  194. अध्यायः १९४
  195. अध्यायः १९५
  196. अध्यायः १९६
  197. अध्यायः १९७
  198. अध्यायः १९८
  199. अध्यायः १९९
  200. अध्यायः २००
  201. अध्यायः २०१
  202. अध्यायः २०२
  203. अध्यायः २०३
  204. अध्यायः २०४
  205. अध्यायः २०५
  206. अध्यायः २०६
  207. अध्यायः २०७
  208. अध्यायः २०८
  209. अध्यायः २०९
  210. अध्यायः २१०
  211. अध्यायः २११
  212. अध्यायः २१२
  213. अध्यायः २१३
  214. अध्यायः २१४
  215. अध्यायः २१५
  216. अध्यायः २१६
  217. अध्यायः २१७
  218. अध्यायः २१८
  219. अध्यायः २१९
  220. अध्यायः २२०
  221. अध्यायः २२१
  222. अध्यायः २२२
  223. अध्यायः २२३
  224. अध्यायः २२४
  225. अध्यायः २२५
  226. अध्यायः २२६
  227. अध्यायः २२७
  228. अध्यायः २२८
  229. अध्यायः २२९
  230. अध्यायः २३०
  231. अध्यायः २३१
  232. अध्यायः २३२
  233. अध्यायः २३३
  234. अध्यायः २३४
  235. अध्यायः २३५
  236. अध्यायः २३६
  237. अध्यायः २३७
  238. अध्यायः २३८
  239. अध्यायः २३९
  240. अध्यायः २४०
  241. अध्यायः २४१
  242. अध्यायः २४२
  243. अध्यायः २४३
  244. अध्यायः २४४
  245. अध्यायः २४५
  246. अध्यायः २४६

गंगासागरसंगमवर्णनम्
ब्रह्मोवाच
सा संगता पूर्वमपांपतिं तं, गङ्गा सुराणामपि वन्दनीया।
देवैश्च सर्वैरनुगम्यमाना, संस्तूयमाना मुनिभिर्मरुद्‌भिः।। १७४.१ ।।

वसिष्ठजाबालिसयाज्ञवल्क्यक्रत्वङ्गिरोदक्षमरीचिवैष्णवाः।
शातातपः शौनकदेवरातभृग्वग्निवेश्यात्रिमरीचिमुख्याः।। १७४.२ ।।

सुधूतपापा मनुगौतमादयः, सकौशिकास्तुम्बरुपर्वताद्याः।
अगस्त्यमार्कण्डसपिप्पलाद्याः, सगालवा योगपरायणाश्च।। १७४.३ ।।

सवामदेवाङ्गिरसोऽथ भार्गवाः, स्मृतिप्रवीणाः श्रुतिभिर्मनोज्ञाः।
सर्वे पुराणार्थविदो बहुज्ञास्ते गौतमीं देवनदीं तु गत्वा।। १७४.४ ।।

स्तोष्यन्ति मन्त्रैः श्रुतिभिः प्रभूतैर्हृद्यैश्च तुष्टैर्मुदितैर्मनोभिः।
तां संगतां वीक्ष्य शिवो हरिश्च, आत्मानमादर्शयतां मुनिभ्यः।। १७४.५ ।।

तथाऽमराऽस्तौ पितृभिश्च दुष्टौ, स्तुवन्ति देवौ सकलार्तिहारिणौ।। १७४.६ ।।

आदित्या वसवो रुद्रा मरुतो लोकपालकाः।
कृताञ्जलिपुटाः सर्वे स्तुवन्ति हरिशंकरौ।। १७४.७ ।।

संगमेषु प्रसिद्धेषु नित्यं सप्तसु नारद।
समुद्रस्य च गङ्गाया नित्यं देवौ प्रतिष्ठितौ।। १७४.८ ।।

गौतमेश्वर आख्यातो यत्र देवो महेश्वरः।
नित्यं संनिहितस्तत्र माधवो रमया सह।। १७४.९ ।।

ब्रहमेश्वर इति ख्यातो मयैव स्थापितः शिवः।
लोकानामुपकारार्थमात्मनः कारणान्तरे।। १७४.१० ।।

चक्रपाणिरिति ख्यातः स्तुतो देवैर्मया सह।
तत्र संनिहितो विष्णुर्देवैः सह मरुद्‌गणैः।। १७४.११ ।।

ऐन्द्रतीर्थमिति ख्यातं तदेव हयमूर्धकम्।
हयमूर्धा तत्र विष्णुस्तन्मूर्धनि सुरा अपि।।
सोमतीर्थमिति ख्यातं यत्र सोमेश्वरः शिवः।। १७४.१२ ।।

इन्द्रस्य सोमश्रवसो देवैश्च ऋषिभिस्तथा।
प्रार्थितः सोम एवाऽऽदाविन्द्रायेन्दो परिस्रव।। १७४.१३ ।।

सप्त दिशो नानासूर्याः सप्त होतार ऋत्विजः।
देवा आदित्या ये सप्त तेभिः सोमाभिरक्ष न इन्द्रायेन्दो परिस्रव।। १७४.१४ ।।

यत्ते चाजञ्छृतं हविस्तेन सोमाभिरक्ष नः।
अराती वा मा नस्तारीन्मो च नः किंचनामदिन्द्रयेन्दो परिस्रव।। १७४.१५ ।।

ऋषे मन्त्रकृतां स्तोमैः कश्यपोद्वर्धयन्गिरः।
सोमं नमस्य राजानं यो जज्ञेवीरुधां पतिरिन्द्रायेन्दो परिस्रव।। १७४.१६ ।।

कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना।
नानाधियोवसूयवोऽनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्दो परिस्रव।। १७४.१७ ।।

एवमुक्त्वा च ऋषिभिः सोमं प्राप्य च वज्रिणे।
तेभ्यो दत्त्वा ततो यज्ञः पूर्णो जातः शतक्रतोः।। १७४.१८ ।।

तत्सोमतीर्थमाख्यातामाग्नेयं पुरतस्तु तत्।
अग्निरिष्ट्वा महायज्ञैर्मामाराध्य मनीषितम्।। १७४.१९ ।।

संप्राप्तवान्मत्प्रसादादहं तत्रैव नित्यशः।
स्थितो लोकोपकारार्थं तत्र विष्णुः शिवस्तथा।। १७४.२० ।।

तस्मादाग्नेयमाख्यातमादित्यं तदनन्तरम्।
यत्राऽऽदित्यो वेदमयो नित्यमेति उपासितुम्।। १७४.२१ ।।

रूपान्तरेण मध्याह्ने द्रष्टुं मां शंकरं हरिम्।
नमस्कार्यस्तत्र सदा मध्याह्ने सकलो जनः।। १७४.२२ ।।

रूपेण केन सविता समायातीत्यनिश्चयात्।
तस्मादादित्यमाख्यातं बार्हस्पत्यमनन्तरम्।। १७४.२३ ।।

बृहस्पतिः सुरैः पूजां तस्मात्तीर्थादवाप ह।
ईजे च यज्ञान्विविधान्बार्हस्पत्यं ततो विदुः।। १७४.२४ ।।

तत्तीर्थस्मरणादेव ग्रहशान्तिर्भविष्यति।
तस्मादप्यपरं तीर्थमिन्द्रगोपे नगोत्तमे।। १७४.२५ ।।

प्रतिष्ठितं महालिङ्गं कस्मिश्चित्कारणान्तरे।
हिमालयेन तत्तीर्थमद्रितीर्थं तदुच्यते।। १७४.२६ ।।

तत्र स्नानं च दानं च सर्वकामप्रदं शुभम्।
एवं सा गौतमी गङ्गा ब्रह्माद्रेश्च विनिःसृता।। १७४.२७ ।।

यावत्सागरगा देवी तत्र तीर्थानि कानिचित्।
संक्षेपेण मयोक्तानि रहस्यानि शुभानि च।। १७४.२८ ।।

वेदे पुराणे ऋषिभिः प्रसिद्धा, या गौतमी लोकनमस्कृता च।
वक्तुं कथं तामतिसुप्रभावामशेषतो नारद कस्य शक्तिः।। १७४.२९ ।।

भक्त्या प्रवृत्तस्य यथाकथंचिन्नैवापराधोऽस्ति न संशयोऽत्र।
तस्माच्च दिङ्मात्रमतिप्रयासात्संसूचितं लोकहिताय तस्याः।। १७४.३० ।।

कस्तस्याः प्रतितीर्थं तु प्रभावं वक्तुमीश्वरः।
अपि लक्ष्मीपतिर्विष्णुरलं सोमेश्वरः शिवः।। १७४.३१ ।।

क्वचित्कस्मिंश्च तीर्थानि कालयोगे भवन्ति हि।
गुणवन्ति महाप्राज्ञ गौतमी तु सदा नृणाम्।। १७४.३२ ।।

सर्वत्र सर्वदा पुण्या को न्वस्या गुणकीर्तनम्।
वक्तुं शक्तस्ततस्तस्यै नम इत्येव युज्यते।। १७४.३३ ।।

इति श्रीमहापुराणे आदिब्राह्मे तीर्थमाहात्म्ये गङ्गासागरसंगमवर्णनं नाम चतुःसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। १७४ ।।

गौतमीमाहात्म्ये पञ्चादिकशततमोऽध्यायः।। १०५ ।।