"गणेशपंचरत्न स्तोत्रम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः
<poem> मुदाकरात्त मोदकं सदा विमुक्तिसाधकम् | कलाधर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती |
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महागणेश पंचरत्नम् आदरेण योन्वहम्| प्रजल्पति प्रभातके ह्रदि स्मरन् गणेश्वरम्| |
महागणेश पंचरत्नम् आदरेण योन्वहम्| प्रजल्पति प्रभातके ह्रदि स्मरन् गणेश्वरम्| |
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अरोगितामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम्| समाहितायु - रष्टभूतिमभ्युपैति सोSचिरात्|| |
अरोगितामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम्| समाहितायु - रष्टभूतिमभ्युपैति सोSचिरात्|| |
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[[वर्गः:स्तोत्राणि]] |
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[[वर्गः:स्तोत्रसाहित्यम्]] |
०६:२०, १ सेप्टेम्बर् २०१२ इत्यस्य संस्करणं
मुदाकरात्त मोदकं सदा विमुक्तिसाधकम् | कलाधरावतंसकं विलासि लोकरक्षकम् |
अनायकैक नायकं विनाशितेभदैत्यकम् | नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ||१||
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरम् | नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्धरम् |
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं | महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ||२||
समस्त लोकसंकरं निरस्तदैत्यकुंजरम्| दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्|
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् | मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम्||३||
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् | पुरारिपूर्व नन्दनं सुरारि गर्वचर्वणम्|
प्रपंच नाशभीषणं धनंजयादि भूषणम्| कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ||४||
नितान्तकान्तदन्तकान्ति - मन्तकान्तकात्मजम् | अचिन्त्य - रुपमन्तहीन - मन्तरायकृन्तनम्|
ह्रदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम्| तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम्||५||
फलश्रुती
महागणेश पंचरत्नम् आदरेण योन्वहम्| प्रजल्पति प्रभातके ह्रदि स्मरन् गणेश्वरम्|
अरोगितामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम्| समाहितायु - रष्टभूतिमभ्युपैति सोSचिरात्||