"ऋग्वेदः सूक्तं १०.५७" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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मा पर गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिनः | |
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मान्त सथुर्नो अरातयः |
मान्त सथुर्नो अरातयः ॥ |
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यो यज्ञस्य परसाधनस्तन्तुर्देवेष्वाततः | |
यो यज्ञस्य परसाधनस्तन्तुर्देवेष्वाततः | |
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तमाहुतं नशीमहि |
तमाहुतं नशीमहि ॥ |
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मनो नवा हुवामहे नाराशंसेन सोमेन | |
मनो नवा हुवामहे नाराशंसेन सोमेन | |
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पितॄणां चमन्मभिः |
पितॄणां चमन्मभिः ॥ |
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आ त एतु मनः पुनः करत्वे दक्षाय जीवसे | |
आ त एतु मनः पुनः करत्वे दक्षाय जीवसे | |
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जयोक चसूर्यं दर्शे |
जयोक चसूर्यं दर्शे ॥ |
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पुनर्नः पितरो मनो ददातु दैव्यो जनः | |
पुनर्नः पितरो मनो ददातु दैव्यो जनः | |
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जीवं वरातंसचेमहि |
जीवं वरातंसचेमहि ॥ |
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वयं सोम वरते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः | |
वयं सोम वरते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः | |
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परजावन्तः सचेमहि |
परजावन्तः सचेमहि ॥ |
११:५४, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
मा पर गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिनः | मान्त सथुर्नो अरातयः ॥ यो यज्ञस्य परसाधनस्तन्तुर्देवेष्वाततः | तमाहुतं नशीमहि ॥ मनो नवा हुवामहे नाराशंसेन सोमेन | पितॄणां चमन्मभिः ॥
आ त एतु मनः पुनः करत्वे दक्षाय जीवसे | जयोक चसूर्यं दर्शे ॥ पुनर्नः पितरो मनो ददातु दैव्यो जनः | जीवं वरातंसचेमहि ॥ वयं सोम वरते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः | परजावन्तः सचेमहि ॥