"बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम्/अध्यायः १६ (पञ्चमभावफलाध्यायः)" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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<br />अथ पञ्चमभावफलाध्यायः॥१६॥ |
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[[Category:Sanskrit]] |
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[[Category:Hinduism]] |
०७:०५, १५ डिसेम्बर् २००८ इत्यस्य संस्करणं
अथ पञ्चमभावफलाध्यायः॥१६॥
उक्तं तृतीयभावस्य फलं संक्षेपतो मया। सुखभावफलं चाऽथ कथयामि द्विजोत्तम॥ १॥ सुखेशे सुखभावस्थे लग्नेशे तद्गतेऽपि वा। शुभदृष्टे च जातस्य पूर्णं गृहसुखं वदेत्॥ २॥ स्वगेहे स्वांशके स्वोच्चे सुखस्थानाधिपो यदि। भूमियानगृहादीनां सुखं वाद्यभवं तथा॥ ३॥ कर्माधिपेन संयुक्ते केन्द्रे कोणे गृहाधिपे। विचित्रसौधप्राकारैर्मण्डितं तद्गृहं वदेत्॥ ४॥ बन्धुस्थानेश्वरे सौम्ये शुभग्रहयुतेक्षिते। शशिजे लग्नसंयुक्ते बन्धुपूज्यो भवेन्नरः॥ ५॥ मातुःस्थाने शुभयुते तदीशे स्वोच्चराशिगे। कारके बलसंयुक्ते मातुर्दीर्घायुरादिशेत्॥ ६॥ सुखेशे केन्द्रभावस्थे तथ केन्द्रस्थितो भृगुः। शशिजे स्वोच्चराशिस्थे मातुः पूर्णं सुखं वदेत्॥ ७॥ सुखे रवियुते मन्दे चन्द्रे भाग्यगते सति। लाभस्थानगतो भौमो गोमहिष्यादिलाभकृत्॥ ८॥ चरगेहसमायुक्तो सुखे तद्राशिनायके। षष्ठे व्यये स्थिते भौमे नरः प्राप्नोति मूकताम्॥ ९॥ लग्नस्थानाधिपे सौम्ये सुखेशे नीचराशिगे। कारके व्ययभावस्थे सुखेशे लाभसङ्गते॥ १०॥ द्वदशे वत्सरे प्राप्ते वाहनस्य सुखं वदेत्। वाहने सूर्यसंयुक्ते स्वोच्चे तद्भावनायके॥ ११॥ शुक्रेण सण्युते वर्षे द्वात्रिंशे वाहनं भवेत्। कर्मेशेन युते बन्धुनाथे तुङ्गांशसंयुते॥ १२॥ द्विचत्वारिंशके वर्षे नरो वाहनभाग् भवेत्। लाभेशे सुखराशिस्थे सुखेशे लाभसंयुते॥ १३॥ द्वादशे वस्तरे प्राप्ते जातो वाहनभाग् भवेत्। शुभं शुभत्वे भावस्य पापत्वे फलमन्यथा॥ १४॥