पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/९

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प्रस्तावना.

परमतत्त्वका ज्ञान शास्त्र और ब्रह्मवेत्ता सद्गुरुके उपदेशके विना किसीकोभी नहीं होता है. इसवास्ते परमोपकारक महर्षिजनोंने अध्यात्मविद्योपदेशके अर्थ अनेक प्रकारके वेदांतग्रन्थ निर्माण करके परमतत्त्वको प्रकट किया है. उन ऋषियों में अग्रगण्य श्रीअष्टावक्रमहर्षिजीने राजा जनकजीके प्रति ब्रह्मविद्याका उपदेश किया वह "अष्टावक्रगीता” इस नामसे ग्रंथरूप होकर प्रसिद्ध हुआ.

यह "अष्टावक्रगीता" ग्रंथ ब्रह्मविद्यामें अतिमान्य है. इसका लाभ सर्व लोकोंको होनेके वास्ते हमने इसकी सरल सुबोध सान्वय भाषाटीका बनवाकर निज "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर" छापेखानेमें छापकर प्रसिद्ध किया है.

सर्व सज्जन ब्रह्मविद्याभिलाषियोंसे प्रार्थना है कि, इस ग्रंथको संग्रह करके इसमें कहे हुए ब्रह्मोपदेशको जानकर इस भवके तरनेका उपाय निश्चित करके इस जन्मका सार्थक करेंगे.

भवदीय कृपाकांक्षी-

गङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास,

"लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर” छापाखाना,

कल्याण.