पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१०१

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प्रकरणं १ श्लो०=[ 96

भासमान साक्षीरूप प्रत्यगात्मा में साक्षात् प्रतीत होता है अर्थात् अहंता ममता के भेद से प्रत्यगात्मा में यह अध्यास दो प्रकार का प्रतीत होता है। जैसे (अहं श्रज्ञः) मैं झज्ञानी हूँ (गलितबलः) में क्षीण बल वाला हूँ. (नरः) मैं मनुष्य हूँ, (दरिद्रः) मैं धनहीन हूं यह एक तथा दूसरा (बत) बड़ा खेद् है (मम तनयाः) यह मेरे पुत्र (कथं जीवेयु:) किस तरह जीवन निर्वाह करेंगे । इस अध्यास के अवांतर भेद् बहुत हैं ।॥४९॥

श्रब श्रात्मा में अनात्म धम के स्वरूपाध्यास को श्रौर अनात्मा में आत्मधर्मो के तादात्म्य संसर्गाध्यास को दिखाते हैं

शार्दूल विक्रीडित छंद

हृष्टः स्थिरोहं बुध इति च तनावात्म

वाहं स्थूलो गोरोऽभिरूपः पटुरिति च

देह धर्मान् मिमीते । अन्योऽन्याध्यस्त

तवलित वपुलहपिंड प्रविष्टो वह्निः कूटा

निव विविधभवानर्थजातं प्रपन्नः ।।५० ।।

मैं शुद्ध हूं, सुखी हूँ, चेतन हूँ, इस प्रकार आत्मा के धर्मो को शरीर में मानता है और मैं युवा हूं. स्थूल , गोरा हूं, चतुर हूँ इस प्रकार के द्वेह के धर्मो को आत्मा में मानता है, जैसे स्रोह पिंड में तादात्म को प्राप्त हुश्रा श्रग्नि लोह पिंड में ही ताड़ना को प्राप्त होता हैं तैसे जीव •