पृष्ठम्:संस्कृत-व्याकरण की उपक्रमणिका.pdf/१०३

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कारक । २६: ताडयति (एड से ‘ताड़ना करता है); जलेन अग्नि निर्वापयति (जल से आग बुझाता है)। ४ । सम्प्रदान (Dative Case ) । जिसको कोई वस्तु दी जाय उसको ‘सम्प्रदानकारक’ कहते हैं। () । सम्प्रदानकारक में चतुर्थी विभक्ति होती है । यथा, दरिद्राय धनं दीयताम् ( दरिद्र को धन दो ), दीनेभ्यः अन्नं देहि, (दुखियों “को अन्न दो)महं पुस्तकं देहि ( सुने पुस्तक हो। ५ ।'अपादान ( Ablative Case ) । जिससे कोई वस्तु अथवा जीव चले, . डरे, ग्रहण करे अथवा उत्पन्न हो उसे अपादानकारक' कहते हैं (२)। अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है । यथा, वृक्षात् पत्रम्पतति ( वृक्ष से पत्र गिरता है ), व्याघ्राद् विभेतिं (व्याघ्र से डरता है ), सरोवरा जलं द्वात्ति (तालाब से जल लेता है ), दुग्धाद् घृतमुत्पद्यते ( दूध से घी उत्पन्न होता है)।

६ । अधिकरण.(Locative Case ) ।

क्रिया का जो आधार (३) है उसको 'अधिकरणकारक' (४) कहते हैं । अधिकरणकारक में सप्तमी विभक्ति होती है । यथा, शय्यायां शेते विीने पर सोता हैं), आसने उपविशति (आसन पर बैठता है, गृहे तिष्टति (घर में रहता है), दुग्धे साद्ध्यैमस्ति ( दूध में मधुरता है ), कलशे जलमस्ति (कलसे में जल है ), तिलेषु तैलमस्ति ( तिलों में तेल. है ), पात्रे दुग्धं स्थापयति ( बरतन में दूध रखता है ), वर्षासु वृष्टिर्भवति ( वर्षाकाल में वृष्टि

  • (१) यस्मै दानं सम्प्रदानम् । (२) यतो विश्लेषोऽपादानम् (जिससे

अलंग होता है उसे ‘अपादानकहते हैं)। (३) आधार तीन प्रकार के होते हैं। यथा, ऐकदेशिक-वने वसति (धन के एक देश में बसता है, वैषयिक विद्ययामनृणगः ( विद्या के विषय में अनुराग ), अभिव्यापी-तिलेषु तैलमस्ति ( तिलों के सभी स्थान में तेल है ) (७) आधारोधिकरणम्।