पुटमेतत् सुपुष्टितम्
॥ श्रीः॥
॥ सुवर्णमालास्तुतिः॥
अथ कथमपि मद्रसनां त्वद्गुण-
लेशैर्विंशोधयामि विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ १ ॥
आखण्डलमदखण्डनपण्डित
तण्डुप्रिय चण्डीश विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ॥ २॥
इभचर्माम्बर शम्बररिपुवपु-
रपहरणोज्ज्वलनयन विभो ।
साम्ब सदाशिव शंभो शंकर
शरणं मे तव चरणयुगम् ।। ३ ।।