पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् (भागः १).pdf/४५२

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( ४४८ ) {{bold|या चाबुक के अग्रभाग को हिलाने वाला दक्षिण वायु कामदेव की आज्ञा से, वियोगी और वियोगिनिओ पर शासन करने के लिए तयार हो गया ।

गाडी के बैल को हाँकने के लिये चाबुक और चाबुक के दण्डे में एक काँटा भी लगा रहता है जिससे गाडीवान बैलो को ठीक चलाता है । उसी प्रकार वियोगी और वियोगिनिओ पर अपना शासन चलाने के लिए काम को आज्ञा से वसन्तऋतु पलाश का फूल रूपी कांटा और लता रूपी चाबुक लेकर, तयार हो गया।

प्रसूननाराचपरम्पराभिर्वर्षत्सु योधेष्विव पादपेषु ।
वसन्तमत्तद्विरदाधिरूढः प्रौढत्वमाप स्मरभूमिपालः ॥५३॥॥

अन्वय:

योधेषु इव पादपेषु प्रसूननाराचपरम्पराभिः घर्षत्सु (सत्सु) वसन्त मत्तद्विरदाधिरूढः स्मरभूमिपालः प्रौढत्वम् आप ।

ब्यख्या

योधेषु भटेष्विव ‘भटा योधाश्च योद्धारःइत्यमरः । पादपेषु वृक्षेषु प्रसूनानि पुष्पाण्येव नाराचाः प्रक्ष्वेडना लोहनिर्मितशरास्तैषा II परम्परास्ताभिः प्रसूननाराच परम्पराभिधेयंत्सु पुण्ययायधाराः पतयत्सु सत्सु, या(दयेभ्यः पुष्येषु पततिस्वति भावः । वसन्त एव मत्तो मदान्धो द्विरदो गजस्तमधिरूढोऽधिष्ठितः स्मरः काम एब भूमिपालो राजा प्रौढत्वं प्रकर्षमौन्नत्यमित्यर्थः । आप प्राप । पुष्पोद्गमेन वसन्ते कामस्य प्रभावः प्रसूत इति भावः ।

भाषा

{{bold|योधाओं के समान वृक्ष के पुष्परूपी लोहे के बाणो की वृष्टि करते रहने पर अर्थात् अत्यधिक फूलो के उत्पन्न होकर नीचे गिरते रहने पर वसन्त रूपी मदोन्मत्त हाथी पर रावार कामरूपी राजा उन्नत अवस्था को प्राप्त हुआ अर्थात् काम या साम्राज्य चारो ओर फैल गया ।

समर्प्यमाणाद्भुतकौसुमास्त्रस्चैत्रेण चित्रीकृतकाननेन ।
अधिज्यधन्वापि पराभुखोऽभून्निपङ्गमारे भगवाननङ्गः ।।५४।।॥