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इस प्रकार बालक वसन्त ने वन में से सभी वस्तुओं से क्रीडा करते हुए क्या नहीं लिया । अर्थात् बालक वसन्त ने कर्तव्याकर्तव्य का विचार छोडकर अपनी इच्छा के अनुसार सब कुछ खेल किया । जैसे कोई बालक वृक्षारोहण, धूर में लोटना और मा के या अन्य स्त्रियो की साडी खीचना आदि चेष्टाएँ करता है वैसेही चैत्र ने किया। भाव यह है किं वसन्त ऋतु के आने से वृक्ष पर वासन्तिक शोभा छा ग़ई, पुष्पो के समूह से खूब मकरन्द चूने लगी और लताओ में से फूल टूट २ कर गिरने लगे । *

दक्षः प्रवालौष्ठसमर्पणाय लतावधूनां मुकुलस्तनीनाम् ।
मत्तालिवैतालिकगीतकीर्तिीभ्रमन्मधुर्यौंवनमारुरोह ।।३८

अन्वयः

मुकुलस्तनीनां लतावधूनां प्रवालौष्ठऽसमर्पणाय दक्षः मत्तालिवैतालिक गीतकीर्तिः भ्रमन् मधुः यौवनम् आरुरोह ।

ब्याख्या

मुकुलानि कुड्मलान्येव स्तनाः कुचा यासां तास्तासां लतावधूनां वीरूद्रूपनारीणां प्रवाला रक्तकिसलया एवोष्ठा अधरोष्ठास्तेषा शमर्पणाय वितरणाय दक्षश्चतुरः प्रगल्भ इत्यर्थः । मता मदान्धा अलयो भ्रमरा एव वैत्लिकाः स्तुतिगायका- स्तैर्गीता गानेन वर्णिता कीर्तिर्ययस्य स भ्रमन्नितस्ततो गतागतं कुर्वन् मधुर्वसन्तो यौवनं तारूण्यमारूरोह सप्राप्तवान् । प्रत्यपकुचभूषितानां किशोरीणाम परोश्ठदाने चुम्बनदाने कुशलो यंततिष गौतकोfतसचरन् समुष्य इव भूरि- तानां लतानां क्रिसलपप्रदाने कुशलो मत्तालिगीतकीर्तिर्भ्रमन् वसन्तो यौवनं प्रापेति भावः ।

भाषा

कली रूपी स्तनो वाली,लता रूपी स्त्रियो को किसलय( नये साल पत्ते) रूपी ओठो को (तृप्त करने में) देने में कुशल मदोन्मत्त भ्रमर रूपी स्तुतिगायको से गाई गई कीर्तिमाला चारो ओर विहरण करने वाला वसन्तऋतु युवावस्था को प्राप्त हुआ । पोटे अर्थात् छोटे छोटे नये बड़े स्तन वाली किशोfरयों के लाल ओठो को चूम लेने में कुशल स्तुतिपाठकों द्वारा कीर्तिगान किए जाने वाले नवयुवक के