पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् (भागः १).pdf/३०७

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विक्रमाङ्कदेव के हाथियो के मदजल से मटमैला समुद्र, मद को सतत चुवाने वाले अभ्रमु नाम की हथिनी के प्रिय पति ऐरावत नाम के इन्द्र के हाथी का स्मरण करने लगा 1 उच्चै श्रवा नामक इन्द्र के घोडे के समान ऐरावत हाथी भी पहिले समुद्र में ही था। बाद में समुद्र मन्थन से उत्पन्न इन दोनों को इन्द्र ने अपना वाहन बनाया ।<poem>{gap स्नानसक्तपरिवारसुन्दरी-वृन्दमध्यमवधीरिताङ्कुशः। यज्जगाम मदलङ्घितः करी भाग्यसम्पदुपरि स्थितस्य सा ॥१७॥

अन्वयः

अन्वयः

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मदलङ्घितः अवधीरिताङ्कुशः करी स्नानसक्तपरिवारसुन्दरीवृन्दमध्यं

यत् जगाम सा उपरि स्थितस्य भाग्यसम्पत् ।

व्याख्या

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मदेन लङ्घितोऽतिक्रान्तमर्यादो मदोन्मत्त इत्यर्थः । अवधीरित उपेक्षितोs. ङ्कुश सृणिर्येन स उपेक्षिताङ्कुशनियन्त्रण गज स्नानेऽवगाहनैे सक्ता सलग्ना परिवारसुन्दर्योऽन्त पुराङ्गनास्तासा वृन्द समूहस्तस्य मध्य स्नानलग्नान्त पुराङ्गनासमूहमध्य यज्जगाम प्रविष्टवान् इति यत्; अत्र यच्छेदेन पादत्रयो क्तार्यस्य सग्रह । सा उपरि गजोपरि स्थितस्य विद्यमानस्य हस्तिपकस्येत्यर्थं । भाग्यसपत भाग्यसम्पत्तिरासीत् । नारीसमूहमध्य गजे प्रविष्टे सति तासां भयजन्यविविधवस्त्रस्खलनादिविलासदर्शनस्य सौभाग्यात् हस्तिपकस्य कृते सा घटना भाग्यरापदेवेति भावः ।

भाषा

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मदोन्मत्त हाथों का, अङ्कुश की कुछ भी परवाह न कर स्नान करने में व्यस्त अन्त पुर की सुन्दरियो के समूह के बीच में अचानक चला जाना, पोलवान के लिये बडे भाग्य की घटना थी। अर्थात् हाथी के डर से अर्धनग्न या नग्न अन्त पुर की कामिनीयो के प्राण छुड़ा कर भागने के हाव भावो को देखने का अवसर पीलवान को प्राप्त होना, बडे भाग्य की बात है अन्यथा अन्त पुर की स्त्रियो को देखना भी उसके लिये असम्भव है ।