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भाषा
उसके भुजबल ने चोलराजाओ से अन्त पुर की दरवानी, चञ्चल पूछ रूप दण्डे को धारण करने वाले सिहो को सौंप दी । अर्थात् उस नगर से सब मनुष्यो के भाग जाने पर नगर के वीरान जागल हो जाने से उसके अन्त पुर को गुफा समझ उसमें शेर रहने लगे ।
चिन्तया दुर्बलं देहं द्रविडो यत्पलायितः । |
अन्वयः
यत्पलायितः द्रविडः संकटाद्रिदरीद्वाप्रवेशे चिन्तया दुर्बलं देहं बहु । अमन्यत ।
व्याख्या
यस्मादिक्रमाङ्कदेवात्पलायित समराङ्गण स्वगृहच्च परित्यज्य द्रुतगति मवलम्ब्य प्रधावितो द्रविडो द्रविडदेशनृप संकट सबाधमत्पादकासशमित्यर्थः । ‘सकट नातु सबाघ इत्यमरः । पदद्रे पर्वतस्य दऱीणा कन्दराणा ‘दरी हु कन्दरो वा स्त्री ’ इत्यमरः । द्वार ‘स्त्री द्वार्द्वार प्रतीहार' इत्यमरः । तस्य प्रवेशस्तस्मिन् पर्वतकन्दराणमल्पावकशाद्वारप्रवेशे चिन्तया पराजयचिन्तया दुर्बल सामर्थ्यहीनमत एव कृश देह शरीर बह्वमन्यत प्रशासितवान् । शरीरस्य स्थूलत्वेऽल्पावकाशाद्रिदरीद्वारे प्रवेशाभावे स्वसरक्षणमसम्भवमिति स्वकृशत्वं प्रशसितवानिति भावः।
भाषा
विक्रमाङ्कदेव के भय से घर दुवार छोड कर भागा हुआ द्रविड देश का राजा, पर्वत की कन्दराओ वे सकुचित द्वार में (छिपने के लिये) घुसने योग्य, चिन्ता से वे भये हुए. अपने शरीर को बहुत प्रयास करने लगा ! अर्थात् शरीर स्यूल होने से वह उस कन्दरा में न घुस सक्ता और उसको छिपने का अवसर न मिलता । इसलिये अपने दुबले पतले शरीर की सराहना करने लगा ।
दृश्यन्तेऽद्यापि तद्भीति-विद्रुतानां द्रुमालिषु । |
२ अलि इत्यपि पाठभेद ।