पृष्ठम्:विक्रमाङ्कदेवचरितम् (भागः १).pdf/१७०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

( १४४ )


भाषा

 प्रसूति घरमे जाने के बाद वहाँ रानी की प्रसव वेदना को कम करने के ध्येय से मन्त्रजप करने में ओठ के हिलने से उसको फैलने वाली कान्ति से युक्त जप करने वालो के ऐसे तेज जलने वाले दीपो के भी मानो जप करते रहने पर, दासियो के, नवजात बच्चे वाली पालतू हसिनी को भी प्रसव वेदना कम होकर पुत्र उत्पन्न होने का उपाय पूछने के लिए, उकण्ठित होने पर (राजा को पुत्र हुआ यह ८५ लोक के वाक्य से सम्बद्ध है ।)


निखातरक्षौषधिगेहदेहली-समीपसञ्जीकृतशस्त्रपाणिषु ।
इतस्ततस्राटनमक्षतोत्करैर्विधाय हुँकारिषु मन्त्रवादिषु ।।८३॥

अन्वयः


 निखातरक्षौषधिगेहदेहलीसमीपसञ्जीकृतशस्त्रपाणिषु मन्त्रवादिपु अक्षतो त्करैः इतः ततः त्राटनं विधाय हुँकारिषु (सत्सु) (नृपतेर्नन्दनोऽजायते त्यनेनान्वयः ।)

व्याख्या

 निखाता गतं विधाय तत्र निक्षिप्ता रक्षाया बालरक्षाया औषधयो भेषजानि

यस्या सा चासौ गेहदेहली सुतिकागृहावग्रहणी ‘गृहावग्रहणी देहली' इत्यमर । तस्यास्समीपे सज्जीकृताः स्थापितः शस्त्र पाणी येषां ते सशस्त्रमनुष्या यैस्तेषु मन्त्रवादिषु मन्त्रपाठकेष्वक्षतोत्करैरभिमन्त्रिताक्षतसमूहैरितस्ततस्त्राटनं रक्षाविधि विशेष " मन्त्रक्षतान्परितो विक्षिप्य तान्त्रिकैर्बालरक्षार्थं क्रियमाणोऽनर्थनिवारण- विधिविशेपस्त्राटनम्” विधाय सम्पाद्य हुँकारिषु हुँकारशब्द कुर्यात्सु सत्सु । (नृपतेर्नन्दनोऽजायतेति सम्बन्धः)

भाषा


 गड्ढा खोदकर जहां प्रसूतिरक्षा की औषधियाँ गाडी हुई थी ऐसी प्रसूतिघर को देवढी के पास सशस्त्र मनुष्य को बैठाने वाले मान्त्रिको के इधर उधर मन्त्राक्षतो को फेंककर त्राटनविधि करके हुँकार शब्द करते रहने पर (राजा को पुत्र हुआ ।)

गृहोदरस्थे जरतीपरिग्रहे किमप्युपांशु स्वमतोपदेशिनि ।
वितीर्णकर्णासु नियासपञ्जरादनल्पशोकासु शुकाङ्गनास्वपि ॥८४॥