पृष्ठम्:रामकथामञ्जरी.pdf/११२

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(बाहिनी ) सेना ! ( आखेदतुः ) प्राप्त हुए । पृष्ठ ७६ (महायस्तः) बड़ा दुखित होकर । पृष्ठ 77 (अनुज्ञाप्य ) आज्ञा लेकर । ( सूर्यमरीचिकल्पम् ) सूर्य को किरणों ( ज्योति ) के समान । ( संख्ये). युद्ध में । (सपरिपुष्लु- वानम्) डूबे हुए। ( रथर्षभः) रथियों में श्रेष्ठ। पृष्ठ ७8 (आशीविषम् ) सर्पको। ( पाणिलाधवम् ) हाथ की सफाई को । (संयुतेषु युद्धों में। पृष्ठ 79 { अप्रतिद्वन्द्वः ) अद्वितीय । ( आकर्णम् ) कानों तक अजिह्मगम् ) टेढ़ा न चलने वाले। (शोणितविस्त्रवे ) रुधिर के प्रवाहों से। पृष्ठ 80 विद्राव्य ) भगाकर । ( अग्निशिखोपमान् ) अग्नि की ज्वाला के सदृश। पृष्ट 8१ (संक्षोदविदा ) चूर्ण कर । ( विरुजः) नीरोग निभृतवत् ) सेवक के समान . ( सौवर्गम् ) सुवर्ण के बने हुए।