पृष्ठम्:रामकथामञ्जरी.pdf/१०५

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(प्रेत्य) मरणं के बाद । (मृद्न्ती ) कुचलती हुई । (मृगा- युतम् ) मृगों से भरा हुआ । (निरयः ) नरक । पृष्ठ31 (आयस्ता ) खेद में पड़ी हुई । ( वनवास क्षमाः) के योग्य। (लब्धसंज्ञम् ) जिसकी मूर्च्छा दुर हो गयी है। ( शोका- र्णव-परिप्लुतम् ) शोक के समुद्र में डूबे हुए। पृष्ठ 33 ज्वलनसङ्काशम् ) अग्नि के समान ( उज्ज्वल)। पृष्ठ ३4 त्रिपथगाम् ) तीन भागो में चलने वाली (गङ्गा) को (अशैवला ) जिस पर सवाल नहीं ( स्वच्छ ) । (जलाधाता- ट्टहासोग्राम् ) (शिक्षाओं में.) लहरों के आधात रूपी उच्च, हास के कारण भयानक । ( फेननिर्मलहासिनीम् ) फेन (झाग) ही जिसका निर्मल हास है । (वेणीकृतजलाम् ) (विविध प्रकार की) लहरें जिसकी वेणी हैं. अन्वास्य ] उपासन करके। (आददे) ग्रहण किया पृष्ठ35 न्यग्रोधक्षीरम् ) वट के "दुध को। (ब्युष्टायाम् ) व्यतीत होने पर । ( आसेदतुः ) प्राप्त हुए। (गाढ दुर्मना ) बहुत दु:खित।