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अकृपक मैदागचिव रेखाशिभूषण रूपकाखा देनरोसिए। कर्क कन्छद्मदिजे स्म की सेवादिद मिर्कियो पापापा पुनः काका यादवाय प्रभेदे पीठसपिंग ॥२॥ मिरेऽबचाने मानप्रददीभेद काकास्याकाकनासाथ कालीकाको रशिकाय] [मलपुष्य कामाच्याच घोषिति | काकानामपि किष्कुईकोष्ठ कवि को---- कागो भांगरे चिए । टोकपीमि॥२४॥ स्त्रीमान्कोकोपासि प्रावदारी तर्क: [कांचा विकासेषु कथ्यते ॥ २५॥ विका कृपय मेमो खा चिके पृष्ठाघरे पये। या कामको को२