शकार—भावे भावे! अण्णेशामि वशंतशेणिशं। [भाव भाव! अन्वेषयामि वसन्तसेनिकाम्।]
चिटः—अन्विष्यतामन्विष्यताम्।
शकारः—(तथा कृत्वा) भावे भावे। गहिदा गहिदा। [भाव भाव! गृहीता गृहीता।]
विट—मूर्ख। नन्वहम्।
शकारः—इदो दाव भविअ एअंते भावे च्यिश्टदु। (पुनरन्विष्य चेटं गृहीत्वा) भावे भावे! गहिदा गहिदा। [इतस्तावहूत्या एकान्ते भावस्तिष्ठतु। भाव भाव! गृहीता गृहीता।]
चेटः—भश्टके, चेडे हग्गे। [भट्टारक! चेटोऽहम्।]
शकारः—इदो भावे, इदो चेडे। भावे चेडे, चेडे भावे। तुम्हे दाव एअंते च्यिश्ट। (पुनरन्विष्य रदनिका केशेषु गृहीत्वा।) भावे भावे। शपदं गहिदी गहिदा वशंतशेणिआ।
अंधआले पलाअंती मल्लगंधेण शूइदा। |
[इतो भावः, इतश्वेटः। भावश्चेटः, चेटो भावः। युवां तावदेकान्ते तिष्ठतम्। भाव भाव! सांप्रतं गृहीता गृहीता वसन्तसेनिका।
अन्धकारे पलायमाना माल्यगन्धेन सूचिता। |
निर्वापितो दीपः।। भाव! गृहीता प्राप्ता॥ तत इत एकप्रदेशे भूत्वैकान्ते हे भाव! तिष्ठ॥ भट्टारक! चेटोऽहम्॥ इदो भाव इत्यादि भ्रमव्युदासाय सुनिश्चयं करोति। युवा द्वावपि तावदेकान्ते तिष्ठतम्। संपदं सांप्रतम्। अंधआले इत्यादि। अनुष्टुप्। अन्धकारे पलायमाना माल्यगन्धेन सूचिता। केशवृन्दे परामृष्टा चाण-
पाठा०-१ केशहश्ते.