पृष्ठम्:महासिद्धान्तः.djvu/88

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३२ सतिलके महासिद्धान्ते इदानी शुक्रचलानयनमाह । चरभै अंशी विकला ततढे विवरात् सितोचं स्यात् ॥४५॥ प्राह्यम् सहस्रगुणं शेषाहगैष्णमेकत्र चरंभैः ६२४ विभज्य फलमंशेोशाद्ये । अन्यत्र ततद्वैः ६६४ विभज्य फलं विकला विकलाद्यं ग्राह्यम् । तयोर्विवरादन्तरात् ( अंशादः फलाद्विकलादि फलं विशोध्यमित्यर्थः ) सितेचि शुक्रचलेचमार्न स्यादिति । अत्रोपपत्तिः । पूर्ववत् शुक्रचलोच्चगतिः = **********३° A \sus", var Roos e ७०२२३७१४३२ × १००० × १२ × ३° vsvy vs VY Roo o o o vo Vr ३७१ ४३२ x o o o X so २६२९८६२५७००००० १७५५५९२८५८ × १००० × ३° ८७७७९६४२९ × ३× १०००° ३२८७३२८२१२५०० ।। ፃ ፍ ¥ $ £ ፍ ¥ ጝ ሙ ፍ ኟዒ• 500 X R{RR ఉ*Rడ°_ o ooo १६४३६६४१०६२५° ६२४+४९९१९११६२ २६ ३३३ ८९,२८७ O o o oo u o 0. o ooo t 十 ६२४ ६२४ ६२४+४२५१६११६२ - २६ ३ ३३८५२८७ १००० ×४२९१९११६२ × ६० × ६०” ६२४ ६२४ × १६४३६६४ १०६२५० o ooo ho o o x *.hʼoʻ'a* taʻh x 'y x è" T ६२४ २६ × १६४३६६४१०६२५० १०००° - १००० × २१४५९५१८१× ३' ६ २४ १३ >k ३२८७३२८२१२५ '१००० x ६४३७८६७४३ ه ه مه ۹ به م مه ۹ & Rゞ ¥ ኛv 8 %% ና ፪ Yoፍ ኛጝ O ν o o 0 o o o R ܠ ܐ ܗ o R ናና ነ +? ༢༠ ༥༠ ༠ ༣ ཉི་ ťY RV94 € VYť: o o oo so e o " खल्पान्तरात ! ६२४ 氏氏Y ।। इयमहर्गणगुणा शुक्रोच्चं भवतीत्युपपन्नमानयनम् ॥४९॥