पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/४०३

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१४९२ ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते (यन्त्राध्यायःद्वाविशोऽध्यायः समाप्तिमगादिति |५७|। इति ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते यन्त्राध्यागो नाम द्वाविंशोध्यायः समाप्तः ।।२२। अब पुन: विशेष और अध्याय के उपसंहार को कहते हैं । हि भा–एवं करण (जलधारा प्रवाहसाधन) से धनुष की ज्या (डोरी) का शीघ्रचलन होता है जिससे शर प्रक्षेपण (शेरका छोड़ा जाना) होता है । जलधारा प्रवाह विकार ही से खशब्द (आकाश में शब्द-मेध गर्जन) होता है । यन्त्राध्याय में तिरपन आर्याएँ हैं । यह बाईसवां अध्याय (यन्भाष्याय) समाप्त हुआ इतेि ॥५७॥ ॥ इति ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त में यन्त्राध्याय नामक बाईसवां अध्याय समाप्त हुआ ॥२२।