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ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते
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करोति । एवमत्र यन्त्रसहस्राणि भवन्तीति । सिद्धान्तशेखरे
"इत्यं स्वबुद्धया गणकः प्रकुर्यान्मेषादियुद्धे गजयन्त्रमत्र।
यत्र स्वयंवाहकनाभिमध्यात् बीजं दशाक्रेन हि कर्मणा यः ॥ “
श्रीपतिनैवं कथ्यते । अस्यार्थः - इत्थममुना विधिना मेषादियुद्ध यन्त्र
तथा गजयन्त्र’ चात्र गणकः प्रकुर्यात् । अत्र श्लोकोत्तरार्द्ध मप्रासङ्गिकमर्थरहितं
च प्रतिभाति । अत्र लल्लोक्त च
"कुर्यादयोऽपि चैवं घटिका जन्हुर्यथेष्टकालेन ।
मेषादीनां युद्ध सूत्र सक्त भवेदुभयोः ॥
परिकल्पित कालाध्वनि युत्तया योगो भवेद्वधूवरयोः ।
घटिकांगुलाङ्कितं वा ग्रसति मयूरः क्रमादुरगस् ॥
हन्ति मनुष्यः पटहं छादयति छादकस्तथा छाद्यम् ।
एवं विधानि यन्त्राण्येवमनेकानि सिध्यन्ति ।”
इति श्रीपतेर्सेलस् । आचार्यादीनां समये ईदृशानि यन्त्राणि साधारणजना-
नामाश्चर्यं कराण्यासन्नित्यनुमीयते । श्रीपतिना त्वल्पान्येव यन्त्राणि सुगमोपायेनोप
योगवन्ति तत एवादाय लिखितानोति ॥५०-५२॥
अब पुनः विशेष कहते हैं ।
हि. मा–एवं वधू-वर मुखस्थ तिर्यक्-कीलोपरिंगत चीरिगत नाड़िकांगुल से
उसी तरह वर में वधं को जोड़ना (मिलाना) चाहिये जिससे वधू के नीचे रन्ध्र (छिद्र)
गत चीरी के अग्र में बंधा हुआ नीचे जाते हुये अलाखु (तुम्बी) से एक घडीकल में एक
गुटिका वर के मुख (मुह) से बाहर निकल कर वधू के मुख में प्रवेश करे। एवं इसी बीज
(सूल) से एक घटीमितकाल में मल्ल (पहलवान) गज (हाथी) महिष (मैसा) मेष (मॅणा)
और अनेक तरह के हथियार रखने वालों के युद्ध होते हैं । मयूर घटिकांगुल से अङ्कित
खण्डों से सर्प को निगलता है । एवं चीरी में गुटिका के ऊपर स्थापित (खे हुए) ब्रह्मचारी
आदि आकार से कोल के उत्क्षेपण के आघात से घण्टा शब्द करती है । इस तरह यह
हजारों यन्त्र होते है । सिद्धान्तशेखर में ‘इत्यं स्वबुद्धघा गणकः प्रकुर्याव’ इत्यादि विज्ञान भाष्य
में लिखित श्लोक के अनुसार श्रीपति कहते हैं । इसका अर्थ यह है—इस विधि से मैषा
(मैंण) दि युद्धयन्त्र तथा गजयन्त्र की रचना गणक (ज्योतिषी) करें । इस इलोक का
उत्तरार्ध बिना प्रसङ्ग का और बिना अर्थ का है । यहां "कुर्यादयोऽपि चैवं घटिका जन्डुरैये
ष्टकालेन” इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित लल्लोक्त ही श्रीपत्युक्ति का मूल है । आचार्य
(ब्रह्मगुप्त) आदि के समय में इस तरह के यन्त्र साधारण जनों के आचर्यं कारक थे ऐसा
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