यन्त्राध्याय
१४५५
वि. भा.-शङकुतलम् (शङकुमूलम्), प्राच्यपरा (पूर्वापररेखा) । शङ्कु
मूल पूर्वापररेखयोरन्तरं भुजः। एकस्मिन् दिने भुजद्वयं ज्ञेयम् । तयोर्युजयोरेकदि
शायां वियुतिः (अन्तरं) भिन्न दिशायां युतिः कार्या, सा द्वादशगुणिता शंक्वन्त
रेण विभक्ता तदा विषुवच्छाया (पलभा) भवतीति ।
अग्राशङकुतलयोः संस्कारेण भुजः=अग्रा +शंतल । तथा अग्रा +गुंतलं
-भुजः, अनयोरन्तरम्=शङ्कुतलान्तरम् = भुजान्तरम् । तदा शङकुतलान्तरं
भुजः । शङ् वन्तरं कोटिः । हृत्यन्तरं कर्णः, इति भृजत्रयैरुत्पन्नत्रिभुजमप्यक्षेत्र
सजातीयमतोऽनुपातः शङ् : =पलभा।
कृतलान्तरॐ१२ = भुजान्तरx१२
शंक्वन्त¥
सिद्धान्तशिरोमणेर्गालाध्याये भास्करोक्त ‘भुजयोरेकान्यदिशोरन्तरमैक्य रवि
क्षुण्ण ' मित्याचार्योक्तानुरूपमेवास्तीति ।।३०॥
अब भुजद्वय से पलभाज्ञान को कहते हैं ।
हि. भा.-शङ,छुमूल और पूर्वापररेखा का अन्तरभुज है । एक दिन में दो भुजों को
जानना चाहिये । एक दिशा में दोनों भुजों के अन्तर को और भिन्न दिशा में दोनों भुजों के
योग को बारह से गुणाकर शंक्वन्तर से भाग देने से पलभा होती है इति ॥३०॥
उपपत्ति ।
अग्रा और शङ्कुतल के संस्कार से भुज होता है । अग्रा +र्शतल=भुज । तथा अग्रा
+शंतल=भुज दोनों का अन्तर करने से शंकुतलान्तर= भुजान्तर । शंकुतलान्तरभुज,
शंक्वन्तरकोटि, ह्त्यन्तर कणं इन तीनों अवयवों से उत्पन्न त्रिभुज अक्ष क्षेत्र के सजातीय
हैं, इसलिये अनुपात करते हैं। शंतलान्तर x १२ = ! भुजान्तरx१२ पलभा, इससे
शवन्तर
आचार्योक्त उपपन्न होता है। सिद्धान्तशिरोमणि के गोलाध्याय में ‘भुजयोरेकान्यदिशोरन्त
मैक्यम्' इत्यादि भास्करोक्त आचार्योंक्त के अनुरूप ही है इति ।।३०॥
शकुवन्तर
इदानीं रचिज्ञानमाह ।
शङ,कुप्राच्यपरान्तर शवप्र घमुदगन्तरं याम्ये ।
लम्बगुणं यष्टिहृतं क्रान्तिज्याऽतो रविः साध्यः ॥३१॥
पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/३६६
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