पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/३५६

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यन्त्राध्यायः १४४५ उपपत्ति । अग्राग्र और यष्टधग्र के अन्तर घटच श की पूर्णज्या है। इसका आधा छ ज्याच्यासार्ध में घटय शाखूज्या होती है । तब अनुपात करते हैं यदि वा ,ज्याच्यासार्ध में यह घटघ शाखूज्या पाते हैं तो त्रिज्या व्यासार्ध में क्या इस अनुपात से त्रिज्याव्यासार्श्व में घटध शाखंज्या आती है। उसका स्वरूप = ज्या ३ घटय श.त्रि इसके चाप को दो से गुणा करने से अंशात्मक होता है उसको छः से भाग देने से घटी होती है इति । सिद्धान्तसर में “न्यसेदग्नां प्राक् प्रतीच्यग्रतोऽत्र याम्योकस्या मध्यदेशान्नतज्या’ यहां संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोकों के अनुसार श्रीपति कहते हैं । इन श्लोकों का अथै यह है--इस पूर्वलिखित वृत्त में पूर्वबिन्दु और पश्चिम बिन्दु से अया का न्यास करना चाहिये । वृत्त के केन्द्र बिन्दु से दक्षिण दिशा में वा उत्तर दिशा में नतज्या दान देना चाहिये अग्र और नतज्या के मानों को शड्कु स.घन करना। उस वृत्त में अहोरात्रषुत्त पाठ घटी से अङ्कित होता है यहां अहोरात्रवृत्त को अंशात्मक अर्थव तीन सौ साठ अंशात्मक करना चाहिये । वह अप्राग्र बिन्दु से देना चाहिये अर्थात् अहोरात्रवृत्त में अंश बिभाग स्वोदयबिन्दु (अग्राग्रबिन्दु) से करना चाहिये । इस तीन सौ साठ अंश से अङ्कित अहोरात्रवृत्त में अग्रा और नतज्या के मानानुसार मापित शङ्कु को उसके मध्यनंत छायाग्र में जैसे हो वैसे स्थापन करना चाहिये । अग्राग्र बिन्दु से शङ: कुमूल पतंन्त अहोरात्रवृत्त में जो अंश है वे गतकलांश है, उन गतकलांश को छः से भाग देने से दिनगत घटी होती है इति । इसकी उपपति । समान पृथिवी में वृत रचना और यष्टि-शङ्कु के स्वरूपादि पूर्व में कथित ही है । इस वृत्त में पूर्व बिन्दु और पश्चिम बिन्दु से अग्रा दान देना तथा वृत्त केन्द्र बिन्दु से नतज्या देनी चाहिये । यष्टचद्र बिन्दु से लम्बरूप अङ्गुलात्मकशङ्कु को चक्रभाग (३६० अंश) से अङ्कित अहोरात्रधृत में यष्टि से संलग्न उस तरह स्थापना करना चाहिये जिससे छायाग्र वृत्तकेन्द्र में पतित हो । इस तरह अग्राग्र बिन्दु से शङकृमूल पर्यन्त अहोरात्रवृत्तीय अंशादिमान कालभाग होते हैं। यहां भास्कराचार्य संस्कृतोपपति में लिखित ‘अग्रागडदितो रविः यहां से लेकर घटिकज्ञानं युक्ति युक्त पर्यन्त’ कहते हैं, इन दोनों का विचार करने से श्रीपत्युक्त और भास्करोक्त भी उपपन्न होता है । यहां काचांश को छः से भाग देने से घटी होती है । अहोरात्रवृत्त में तीन सौ साठ अंश अक्कित है इसलिये साठ घटी के अनुसार छः अंश में एक घटी होती है । यह द्वीपयुक्त यद्यिन्त्र से समय ज्ञान भास्करोक्त भी शिष्यधी वृद्धिद तन्त्र में लल्लोक्त ‘अग्राग्राच्छङ्कुभ्रमवृत्ते कालांशकॅलिखेद्राशिम्’ इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित इन श्लोकों के अनुरूप ही इसको विवेचक लोग विचार कर देखें इति ।।२२।