अत्रोपपत्तिः ।
यदि इ य+इ. क+रू=य. क, यत्र य, क माने अभिन्न स्तः । अत्र यदि य=न+इ, क=प=इ तदा य.क = (न+इ)(प+इ) = इ(न+इ)+इ(प+इ)+रू वा न. प+इ. न+इ. प+इ. इ = इ.न+इ. इ+इ. प+इ.इ+रू सम्शोधनेन न. प = इ. इ+रू श्रतः इ.इ+रू/प, अत्रा (न) स्य तथाऽभिन्नं मानं कल्प्यं यथा प मानमभिन्नं स्यात् । ततो न, प मानाभ्यामुत्थापनेन य, क माने भवेताम् । यदि इ.इ+रू इदं धनात्मकं भवेत्तदा (न) ऽस्य ऋणमानकल्पने (प) ऽस्यापि ऋणमानमागमिष्यति तदा य= इ—न क=इ-प, एतेनोपपन्नमाचार्योक्तम् । सिद्धान्तशेखरे "जह्यात् पक्षादेकतो भावितानि वर्णों रूपाण्यन्यतो वर्णघातः । क्षिप्तोरूपैस्ताड़िते भाविते च भक्तवेष्टेन प्राप्तिहारो नियोज्यौ । ज्येष्ठाल्पाभ्यां वर्णकाभ्यां यथेच्छं व्यत्यासाद्वा भाविताप्तौ च वर्णौ । स्यातामेवं स्वस्व वणौं त्वभीष्टैर्मानैः कर्मतत्प्रमाणस्य कुर्यात्' श्री पत्युक्त च समुपपद्यते । श्रीपत्युक्तमेव भास्करेण बीजगणिते “भावितं पक्षतोऽभीष्टात्यक्त वा वणौ सरूपकौ । अन्यतोभाविताङ्केन ततः पक्षौ विभज्य च । वर्णाङ्काहतिरूपैक्य भक्तवेष्टेनेष्ट तत्फले । एताभ्यां संयुतावूनौ कर्तव्यौ स्वेच्छया च तौ ॥ वर्णाङ्को वर्णयोमनेि ज्ञातव्ये ते विपर्ययात्' इत्यनेन स्फुटमुक्तमिति ।। ६० ।।
अब भावित बीज को कहते हैं।
हेि. भा.-भावित के गुणक और रूपों के घात में अव्यक्त गुणकद्वयवध को जोड़कर इष्ट से भाग देकर लब्धिग्रहण करना चाहिए । इष्ट और लब्धि में जो अधिक हो उसको अल्प अव्यक्त गुणक में जोड़ना और अल्प को अधिक अव्यक्तगुणक में जोड़ना और, इस तरह दो राशिमान होता है उन दोनों राशियों को भावित गुणक से भाग देने से विपरीत अव्यक्तमान होता है अर्थात् प्रथम अव्यक्त गुणक में जोड़ने से जो होता हैं वह द्वितीय अव्यक्त का मान होता है , तथा द्वितीय अव्यक्त गुणक में जोड़ने से जो होता है वह प्रथम अव्यक्त का मान होता है इति ।
उपपति । यदि इ.य + इ.क + रू = य.क जिसमें य, ओर क का मान अभिन्न है, यदि य = न+इ, क=प+इ तब य.क=(न+इ)(प-+इ) = इ(न+इ) + इ(प+इ) + रू वा न . प+इ . न+इ . प+ई.इ=इ. न+इ . इ+इ . प+इ. इ रू समशोधन से