पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/८१

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६४ फुटसद्धान्ते उत्पत्ति शकवर्ष-ष्टम्स तिथि इन सबों के ज्ञान से अहर्गण का आनयन क~ते हैं। 'घल्प पर धै मनवः षट्कस्य गता:’ इत्यादि आचार्यों के श्लोक से स्यादि से गतवर्षन्त तक गत वर्षे संख्या विदित है, सृष्ट्यादि से चान्द्रवर्षतुल्य दान देने से जो दानान्त बिन्दु होता है। वह किसी चैत्रमन्त बिन्दु ही पर होता है; फिर गत चैत्रामन्त से इष्ट तिथ्यन्त पर्यन्त जो चान्द्रदिन संख्या है तत्संख्यक सौर दिन सख्या (इष्ट तिथि संख्यक सौर दिन सख्या) गत मेषादि से दान दिया बह सौर दानान्तबिन्दु इष्ट तिथ्यन्त से आगे होता है क्योकि गनमेषदि बिन्दु गतचेश्रामान्त से आगे है फिर दानान्त बिन्दु रू चान्द्रवर्षात से (दानान् चैत्रामान्त से) इष्ट तिथि तुल्य चन्द्र दिन दिया तब वह दानान्तबिन्दु गवऽन्ति से पहले ही कहीं इष्ट तिपन्तममबिन्दु ही में होता है. क्योंकि. चान्द्र दिन <सौरदि. तब सृष्ट्यादि से सौरवर्षादि संरूग़ और चद्रवर्षादि संख्य-समान ही दान दिया क्योंकि सृष्ट्यादि से गतवर्षान्त- पयंस सौर वर्ष संख्या जो है तसंख्यक ही सृष्ट्यादि से चन्द्रत्रयं दिये उससे आगे फिर गत मेषादि से सौरान्तश्यंन्त इष्टति थितुल्य सौर संख्या जो है उतने ही दनन्त चन्द्रवर्षान्त से इष्ट तिथि तुल्य चान्द्र दिन दिया, अत: इन दोनों (सृष्ट्यादि से सरदानान्त बिन्दुपर्यन्त चान्द्रवर्षादि संख्या जो है तसदृपक ही सृष्ट्यादि से इष्टतिथ्यस सम दानान्त बिन्दु पर्यन्त चान्द्रवर्षादि संख्) के अन्तर (इष्टfतञ्पन्तसमदानान्तबिन्दु से सौरान्तबि दुपर्यन्त) चान्द्रजातीय सवयवाधिमास है, उनमें इष्टतिथ्यन्तसमदानान्त बिन्दु से इष्टतिथ्यन्त पयंन्त पूरा प्रधिमास है उसके बाद. (इष्टतैथ्यन्त से सौरान्त तक) प्रधिशेष है । सौरान्त में जो चान्द्र है उनका और सरसं एक चाद्र का अन्तर सावयवाविम स जो है वही सौरान्त में जो सौर है उनका और उस सान्तःपाति चान्द्रसंख्यक सौर का अन्तर है, दोनों में संख्या की तुल्यता ही है किन्तु चाश्रमक अधिमास सौरान्त से पहले और सरारमक अधिमास आगे होता है । इन दोनों में यह पहला ही अघिमास लेना चाहिये । इसलिए उसका आनयन करते हैं । वे रूधिमास = इष्टमर अध शेष गतधिमास + इस तरह करके । यहां अधिशेष को कल् सौर कसो त्याग देना क्योंकि । इष्ट तिथ्यन्त से सौरान्त तक अधिशेष ही है, इष्टाधिमाससंख्या गताधिमाससंख्या ) को तीस से गुणकर जो हो गताविदिन उसमें इष्टसौर दिन संख्या जोड़ने से जो इष्ट तिथ्यन्त में चान्द्राहर्गण होता है । तत्र कल्पचाद्रदिन में कल्पावमदिन पाते हैं तो इष्टचान्द्र दिन ( आनीतचान्द्राहर्गण ) में क्या इस अनु गत से अवमशेष सहित यल व x इष्टच दिन अव१शेष गतवम दिन आता है। -गतावमदिन+, इन अवमशेष कलचन्द्रांदन व.चि दिन सहित गतावमदिन को चान्द्राहगंण में घटाने से तिथ्यन्त में सावनाहर्गण होता है चान्द्र- अवमशेष हंगंणगतावमदिन - -परतु तिष्यन्त और सूर्योदय के मध्य में अवमशेष है। कलचद् दिन इसलिए तिथ्यन्त कलिक सवनाहगंण में अवम शेष को जोड़ने से सूर्योदयकालिक सावनाहर्गण अब मशेष अवम शेष होता है, चान्द्र हरीण-ग्रतावमदिन-- चाद्दृगेण करुखचन्द्र दिन कर चान्द्रदिन