पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४१२

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

उद्ग्रहणविकार ३६५ सम्पात सविग्रह है=ी म बिन्दु से नेबस्य श्यामार्ध वृत जनितवृत पौर पूगपरवृत का परमान्तरवृत्त है, ल=सग्न, =ान्तिवृत मौर क्षितिजवृत्त का सम्पात बिन्दु। पू=पूवंस्व स्तिक, पूल= सग्नानागाप, स= ममस्थान, क= कदम्ब. सस=सग्नप्राकटयप, नम=ान्तिह्स और पूर्वापरवृत का थरमान्तर=त्व, संल=निषत्रमग्नान्तर <समन=वित्रिमसग्न का उन्नतां, तब सलग थीमआण त्रिभुज में मनुपात ठे सस्नकोfटल्य-चित्रिम शक * =परमान्तरकटिया, इङने चाप को गवांत में अपने से परमान्दार=म होता है, तब सुनम, संसg दोनों चापीय आ नि ने स्थान खणतीय हैं इवनिबे अनुपात से त्रि सरनाग्रा = सुपि ग्रह और मल की पत्तरवा, इसके भारत को अन्त में भटाने वे । परमान्तरण सनिग्रह होता है, w=प्रहसंग=सनियम और ब्रह का अन्तर मह विदित हैल = सन्दिग्रह और ग्रह की अन्तरकोटि=<खक ख= पटिषठक का आग त्रिभुज में अनुपात करते हैं वन्धि इहान्तरकोटिज्याए४ परवान्तरण उपकोटिभ्यामुखी =<ः =सटत्वमन, इटका अ । करने हे स्पष्ट बसन होता है ॥१८॥ इदानीं प्रहणे चन्द्रवर्णामाह आन्तवः सधूमः अतः अग्रहेषतोऽप्यधिके। अत्र । स्वताः सर्वाः कचिवबर्हः ॥॥१४॥ सु- मां. -प्राचन्तयोश्चन्द्रः स एो धर्मो भवति । अबूलाड़ी लान्ते च चन्द्र प्रवर्ती भवति । अत्रताप्राः खर चित्रण विरित्यजेः । शेषं स्पष्टार्षेय। स्मथले प्रवर्द्धः सुखोषिविस्मरो भेठदनुरूपमेव I१॥ नि. मा–चन्तयोः (इसाद आइलाग्यो ण) यः श्वो (प्री- अतःभवडि । च : धर्मे अदि, योऽवधि के (अब इसे) इक्षताश्नः हर विश्वविद्यारि)ि , यः कविवर्यं धीति ॥१॥