पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४०

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मध्यमादिकारः

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वटेशवराचार्य बहत्तर युगों का कल्पमान कहते हैं, लेकिन उनके मत का समर्थन अन्य किसी ज्यौतिषाचार्य, स्मृतिकार तथा पुराणों ने नहीं किया है इसलिए उनका मत कैसे ठीक है इस बात का विवेचक लोग विचार करें ॥ १२ ॥


इदानीं रोमकसिद्धान्तमतं खण्डयति ।

युगमन्वन्तर कल्पाः कालपरिच्छेदकाः स्मृतावुक्ताः ।

यस्मान्न रोमके ते स्मृतिबाह्यो रोमकस्तस्मात् ॥ १३ ॥


    वि. भा.‌—यस्मात् कारणात्स्मृतौ (वेदार्थप्रतिपादके ग्रन्थे) युगमन्वन्तरकल्पाः (युगमन्वन्तरादयः) कालपरिच्छेदकाः (समयविभाजकाः) उक्ताः (कथिता:) अन्यथाऽनाद्यनन्तव्यापककालेन मानवानामेकमपि व्यवहारकार्यं न चलेत् । रोमके (रोमकसिद्धान्ते; ते (युगमन्वन्तरादयो) न सन्त्यर्थात्तेषां तेपां- नामोल्लेखा न सन्ति तस्मात्कारणाद्रोमकः स्मृतिवाह्योऽतोऽत्र रोमकसिद्धान्तस्त्याज्य इति ।। वस्तुतो ज्यौतिषसिद्धान्तग्रन्थेषु युगमन्वन्तरकल्पानां ग्रहादिसाधनार्यं कीदृशं प्राधान्यमिति तत्साधका एव ज्ञातुं शक्नुवन्ति । तान् विना सकलं ज्यौतिषशास्त्रं निरर्थकमेव भवेत् । अतो रोमकसिद्धान्ते तच्चर्चाऽकरणेन कीदृश्यस्त्रुटयः कृतास्तत्सिद्धाकर्त्रेति मन्दमतयोऽपि ज्ञातुं शक्ष्यन्तीति ॥ १३ ॥

अब रोमकसिद्धान्त मत का खण्डन करते हैं ।

    हि. भा.—जिस कारण से वेदार्थ के प्रतिपादन करने वाले स्मृतिग्रन्थों में युगमन्वन्तर और कल्प को काल (समय) का परिच्छेदक ( विभाजक ) कहा गया है अर्थात् इन्हीं युग-मन्वन्तरादियों के द्वारा विभक्त अनाद्यनन्त व्यापक काल से मानवों के सव व्यवहार चलते हैं, यदि ऐसा नहीं होता तो अविभक्त व्यापककाल से एक भी कार्य होना असम्भव है इसलिए पूर्वोक्त विषयों के उल्लेख स्मृतिकारों ने अत्यावश्यक समझ कर किये हैं। रोमकसिद्धान्त में इन सब की चर्चा भी नहीं की गई है इसलिए वह सिद्धान्त स्मृतिबाह्य है अर्थात् स्मृतिशास्त्रों से बहिर्भूत है इसलिए वह त्याज्य है । वस्तुत: ज्यौतिषसिद्धान्त में युग-मन्वन्तरादियों की ग्रहादि साधनार्थ कैसी प्रधानता है यह विषय ग्रहादि साधन करने वाले ही जान सकते हैं । बिना उनके सम्पूर्ण ज्योतिषशास्त्र निरर्थक है इसलिए रोमक सिद्धान्त में उनकी चर्चा न करके बहुत बड़ी त्रुटि की गई है, इस बात को अल्पज्ञ भी समझ सकते हैं ॥ १३ ॥