पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३८२

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चन्द्रग्रहणाधिकारः देह है । नि मलन भेद और उन्मीलन भै (वे चन्द्रग्रहण में मोर यंत्रण में परस्पर विपरीत हते हैं ) दिन भेद (बद्रग्रहण में म्यिति महत होती है और सूर्यग्रहण में सम्र) विमर्दकाल (जन्भगृह में मात्र और सूर्यग्रहण में मग्) अपनं (स्पगंज मसर्गय) भेद (बन्द्रप्रहृण में स्थिरयर्षा से और सूर्य ग्रहण में नम्बन मंस्थित्यर्ध में) याभेद (प्रपसे-प्रपने इक्षुभेद से प्रग्रहादियों में होते हो है) मोक्षभेद (चन्द्रग्रहण में पश्चिम में पर सूर्यग्रहण से पूर्व में मोक्ष होता है) आमभेद (चन्द्रग्रह में भर से और सूर्यग्रहण में नतिमंस्कृतशर से) इcडग्रसभंद (चन्द्रप्रस्र में लाकालिकर भी मर गतािन स्थित्यर्ध में भी, मुथैशहण में नतिसंकुनशर में और स्फुटम्धिस्यघं से भी) पनिलेख भेद (चन्द्रग्रहण में गणित गतभर से भर सूर्यग्रह में नतमस्कृतभार ले ) इस तरह यहां दह भेद होते हैं, जिस कारण से चन्द्रग्रहण और मूषेपण के दान से इन चौदह भेदों का नान होता है । इस क्षेत्र से मैं बन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण को कहता है इव ॥१-२-३॥ ॥ इदानीं तात्कालिकीकरणमाह तिथिगतगम्ये भुक्तिगुणे भुवस्पन्तरहते फलोनयुते । रविशशिनौ समालिप्तौ पातस्तात्कालिको भवति ॥४॥ सु. भाI.-तिथिगतगम्ये तिथिगतगम्यतले भुक्तिगुणे रविभुक्त्या चन्द्रभुक्त्या च गुणे । उभयन र त्रिचन्द्रभुक्यन्तरेण हृते । गतासने फलोनौ गम्ये फलयुता रविशशिनौ । एवं तो तात्कालिकौ तिथ्यन्ते समलिप्तौ भवतः। एवं पातगस्था पातोऽ प तावकलिको भवति । अत्रोपपत्तिः । तिथिगतगम्ये कले षष्टिगुणे रविचन्द्रगत्यन्सरभक्त गतैष्य घटिकास्ता गतिगुणाःषष्टिहृताश्चालनफलाः स्युः । एवमत्र षष्टितुल्पयोर्गुणहरणे नशाखथोक्ता क्रियोत्पद्यते । वि. भा. -तिथियतमम्ये (तिथिगतगम्यकसे) भुक्तिगुणे (चन्द्रगस्था रविगरया च गुणिते ) भुक्न्तरङ्गते (रविचन्द्रयोर्गत्यन्तरेण भक्ते) भतासने फलेन होनौगम्यचालने फसेन युतौ चन्द्ररवी, तिच्यन्ते ताकालिक समलिप्त चन्द्ररवी अखतः । एवं स्वगत्या पाशोऽसि वालिको भवतीति । यढिरविचन्द्रगत्यन्तरहसायां षष्टिपटिका लभ्यन्ते तदा तिथिव6कलायां मम्यफलाय च किमित्यनुपातेन तिबिमलद गम्यगक्षय समावयति, खe: षष्टिपटिकायां स्वस्वगतिकक्षा सम्बन्ठे ख शिविधतादृशं तिथिमभ्य