पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३४३

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३२६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते अन्या. दिन .बैंक -= फलम् । ततः अन्या-फल=अन्या-इष्टान्त्या = इच्छक नतोक्रमण, एतस्या उत्क्रमज्याखण्ड श्वापं कार्यं तदा नतासवो भवन्ति. उत्तर दक्षिणगोलक्रमेण इष्टान्याचरज्या=सूत्रम्, अस्य चापं चराधेन युतं हीनं तदा दिनगतं दिनशेषच भवतीतिसिद्धान्तशेखरे अन्त्यां दिनार्घश्रवणेन हत्वा भजेत् स्वकर्णेन फलोनितान्याःशेषस्य घन्वोत्क्रमशिञ्जिनीभिर्नता दिनार्धादथवाऽसवः स्युः ” इत्यनेन श्रीपतिना, ‘दिनार्धकर्णादयवाऽन्यकाघ्नाव् इत्यादिना भास्कराचा यंण चाऽऽचार्योक्तानुरूपमेवोक्तमिति ॥४४-४५॥ अब पुनः प्रकारान्तर से कहते हैं । हि.भ.-अन्या को दिनार्ध कर्ण से गुणा कर इष्ट छायाकर्ण से भाग देने से जो फल होता है उसको अन्त्या में घटाने से जो शेष रहता है उसका उत्क्रमज्या खण्डों से चाप करने पर नतासु प्रमाण होता है । फल (इष्टान्या) में उत्तर और दक्षिण गोलक्रम से च ज्या को होन पर युत करने से जो होता है उसका क्रमज्या खण्डों से चाप करना उसमें चराधं को जोड़ने और घटाने से पूर्वाह्न में दिनगत और अपराह्न में दिनशेष होता है इति ॥४४-४५॥ उपपत्ति दिङ - त्रि१२- इष्टशङ्कु- ह इछाक अब अनुपात करते हैं यदि दिनावंशङ्कु में हुति पाते हैं तो इष्टशङ्कु में क्या इससे इष्टहृत आती है, इति इशं _ हृति. त्रि. १२. दिदंशं – हृत. डिट्रैक अब इससे इष्टान्य दिश त्रि. १२. इयक

इद्दति. त्रि -हृतदिक- त्रि = अन्या. दिक

इछक =

Eएफूल, अन्त्या—-फल

• इक अन्या-इष्टान्त्या=नतोहक्रमज्या, उक्रमज्याखण्डों से इसका चाप नतासुमान होता है । उखर मोल और दक्षिण गोल क्रम से इष्टान्त्याः चरण-सूत्र, इसके चाप में चरासु को बोड़ने और घटाने से दिनगत और दिनलेख होता है, सिद्धान्तशेखर में अन्य दिनार्ध अषणेन हत्वा' इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोक से औषति ‘दिनार्चक्रणदथवन्त्य काष्नादित्यादि से भास्कराचार्य भी भाषायानुरूष ही कहते हैं इति ॥४-४५॥ इदानीं नवत्यधिकचापस्योनमज्यां त्रिज्यातोऽत्रिकाया उत्कमध्यायाश्चापं चाह उत्क्रमणीवाम्याधिकक्रमत्रया संयुतं धनुर्धनुषह. । स्तविौ हैनमथरासय पूर्ववदेवम्. अ४६