पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३३

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अब कालमानों की विभागकल्पना को कहते हैं । हेि. भा.-छह असु की एक नाक्षत्री विधटिका (पल) होती है, साठ पल की एक घटी (दण्ड) होती है। साठ घटी का एक दिन होता है, तीस दिनों का एक मास होता है । बारह मासों का एक वर्ष होता है । पल, दण्ड, दिन, मास, और वर्ष इन्हीं के बराबर क्षेत्रीय (कक्षा ) विभाग विकला, कला, अंश, राशि और भगण हैं अर्थात् जैसे एक वर्ष का विभाग मास, दिन आदि हैं वैसे ही एक भगण का विभाग राशि, अंश आदि हैं। इनके स्पष्टीकरण के लिए नीचे लिखकर दिखलाता हूँ । इन के बराबर ही क्षेत्रीय (कक्षा) विभाग होता है। जैसे ६ असु = १ पल ६० पल ६० घटी = १ दिन ३० दिन = १ मास १२ माम् = १ वर्ष ६० विकला== १ कला ६० कला = १ अंश ३० अंश = १२ राशि १२ राशि = १ भगण सिद्धान्तशिरोमणि में भास्कराचार्य ‘क्षेत्रे समाद्येन समाविभागाः स्युश्चक्रराश्यंशकला विलिप्ता: इससे तथा सिद्धान्तशेखर में श्रीपति ‘एवं चक्रक्षशलिप्ता विलिप्तास्तुल्याः क्षेत्रेऽनेह साऽब्दादिकैन, इससे ब्रह्मगुप्तोक्त के अनुरूप ही कहते हैं लेकिन, ‘अक्ष्णोनिमेषः कथितो निमेषस्त्रिशद्विभागोऽस्य च तत्परा स्यात्' इत्यादि से श्रीपति तथा ‘योऽक्ष्णोर्निमेषस्य खरामभागः स तत्परस्तच्छतभाग उक्ता' इत्यादि से भास्कराचार्य भी ब्रह्मगुप्तोक्त से अधिक कहते हैं। वटेश्वरसिद्धान्त में बटेश्वराचार्य निमिष आदि कालप्रमाण की जो परिभाषायें करते हैं वे श्रीपत्यादिकथित उनके मानों की परिभाषाओं से भिन्न ही हैं। इन सब बातों को देखकर विवेचक ज्योतिषी लोग विचार करें इति ।॥५-६॥ चतुर्युगसंख्या युगचरणमानानि च प्रदर्शयन्नामभ्यामाह । खचतुष्टयरदवेदा ४३२०००० रविवर्षाणिां चतुर्युगं भवति । सन्ध्यासन्ध्यांशैः सह चत्वारि पृथक् कृतादीनि ॥ ७ ॥ युगवशभागो गुणितः कृतं १७२८००० चतुभिस्त्रिभिर्गुण १२९६००० स्त्रेता । द्विगुणो ८६४००० द्वापरमेकेन सङ्गुणः ४३२००० कलियुगं भवति ।॥८ ॥ वा. भा.-रविवर्षाणां खचतुष्टयरदवेदसंख्यया चतुर्युगं भवति । खच्चतुष्ट यरदवेदाश्चाथ प्रदक्षिणेन स्थाप्यमानाः विचत्वारिंशल्लक्षाणि विशतिश्ध सहस्राणि भवन्ति.४३२०००० संध्यासंध्यांशैः सहेति येयं चतुर्युगसंख्या मयाभिहितैषा संध्या संध्यांशैश्च सह । संध्या च कृतादीनां स्वद्वादशशुभंगतुल्या संध्यांशश्व. तावानेव मानवे