पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३१३

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२९६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते प्रकारेण गतशेषाच्छेदानयनमार्यासार्थमाह । वि. भा–प्रश्नासुभिः प्राक् (पूर्व) उदये (लग्ने) उपेक्षिते भुक्तराशिभिः (भुक्तांशैर्युक्तराशिभिश्च) अर्कः(विः) ऊनः (हीनः) तदा लग्नं भवेत् । लग्नाका लानयने चार्कलनग्नसममूनं कृत्वा एवं प्राक् (सूर्योदयात्पूर्व)इष्टकालो भवेत्। एतदुक्त भवति तात्कालिकरवेर्मुक्तांशादिकं रख्याकान्त राश्युदयमानेन सङ्ग ण्य त्रिंशद्भि भक्ता लब्धमिष्टासुभ्यो विशोध्य रवेश्च राशिभुक्त शोधयेत् । शेषासुभ्योऽपि यावन्तो राशयोऽभुक्ताः शोधयितुं शक्यन्ते तेषामसून् विशोध्य रवावपि तावन्तो राशयः शेषा सुंश्च त्रिशता संगुण्याशुद्धराश्युदयेन विभज्य लव्धमंशादिक रवेः शोध्यं तदा रात्रिशेषे लग्नं भवति । एवमानीताद्रारात्रिशेषलग्नात्कालानयनार्थं यथापूर्व कालेन हीनो रविः स्वदेशराश्युदयलव्धराश्यंशादिभिर्लग्नत्वं प्रापित: एवं वैपरो त्येन लग्नस्य समतां नीते सति तस्मिन् रवौ रात्रिशेषगतकालः स्पष्टो भवति । एतदुक्त ' भवति, लग्नादभुक्तांशैरन्तरराश्युदयैश्च संमिलितैरसकृद्भर रात्रि- शेषे स्फुटः कालो भवति । रविंरभुक्तांशराश्यादिरहितो लग्नसमो भवतीति ॥ २४ ।। अत्रोपपत्तिरपि भाष्यरूपैव बोध्या। सिद्धान्तशेखरे ‘प्रागुद्गमादपि रविर्गत- राशिभागैः प्राग्भोदयंवरहितश्च विलग्नमेवमूने रवौ तनुसमे च कृते स कालः श्री पत्युक्तमिदं शिरोमणौ ‘मुक्तासुशुद्ध विपरीतलग्नमित्यादिभास्करोक्त चाऽs चार्मोक्तानुरूपमेवेति ॥ २४ ॥ अब विलोमलग्न को तथा उससे कालानयन को कहते हैं । हि. मा-इष्टासु से पूर्व लम्न अपेक्षित हो तो भुक्तांश ओर भुक्तराशियों को रवि में से घटाने से लग्न होता है, तात्कालिक रवि के भुक्तांशादि का जिस राशि में रवि हो उस राशि के उदय मान से गुणाकर तीस से भाग देकर जो लब्धि हो उसको इष्टासु में से घटा कर सूयं में से मी राशिमुक्त को घटा देना चाहिए । शेषासु में जितनी अभुक्त राज्युदयमानासु घट सके उन्हें घटा कर रवि में से भी उतनी राशियां घटा देना, शेषासु को तीस से गुणाकर अशुद्धरात्रि के उदयमान से भाग दे कर जो अंशादिक लब्धि हो उसको रवि में से घटाने से रात्रि क्षेत्र में लग्न होता है । इस तरह लाए हुए रात्रि शेष लग्न से अभुक्तांश और रवि तथा सम के अन्तर में जो राशियां हैं उनके उदयमानों के योग से असकृत् कमी से रात्रि क्षेत्र में स्फुट इgज्ञान होता है । २४ ॥ इसकी उपपत्ति माध्य रूप ही है । सिद्धान्त शैखर में "प्रागुद्गमादपि रविर्गतराशि आमैः इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोक से, औषति तथा सिद्धान्त शिरोमणि में “जसु च विपरीतलनं' इत्यादि से भास्कराचार्याक्त के अनुरूप ही कहा है इति ॥२४॥ t