पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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बृहत्स्तोत्ररत्नाकरे - प्रथमभाग:
चैतन्याकार आशीविषधारक काशीपुरनायक हृद-
म्बुजकृतविलास चिदम्बरकृतनिवास आकर्णचलिता-
पाङ्ग गोकर्णरंचितानङ्ग घोराशुरपुर धूमकेतु स्मित
वाराकरगत रामसेतु स्थित रक्षणलीलाविलास
दक्षिणकैलासवास आताम्रलोलनयन एकाम्नमूलभवन
आभीलविधुसेवन श्रीशैलशिखरपावन द्राक्षामधुर
वाग्गुम्भ रुद्राक्षरुचिरदोस्तम्भ कालकण्ठरुचिघटित-
लावण्य नीलकण्ठमखिनिहितकारुण्य सेवापरतन्त्र-
पालक शैवागमतन्त्रकारक सर्गस्थितिसंहृतित्रयस्थेय
गर्भश्रुतियन्त्रित गायत्र्यनुसंधेय अध्यासितवर-
निकुञ्जगृहहिमाहार्य अध्यापितहरिविरिञ्चिमुख
शिवाचार्य अर्चितानन्तविहर सच्चिदानन्दशिशिर
विजयीभव विजयीभव ॥
दृष्ट्वा कौस्तुभमप्सरोगण-
मपि प्रक्रान्तवादा मिथो