पृष्ठम्:बृहत्स्तोत्ररत्नाकरः (प्रथमः भागः).pdf/४७८

विकिस्रोतः तः
पुटमेतत् सुपुष्टितम्
४७०
बृहत्स्तोत्ररत्नाकरे - प्रथमभाग:


चैतन्याकार आशीविषधारक काशीपुरनायक हृद- म्बुजकृतविलास चिदम्बरकृतनिवास आकर्णचलिता- पाङ्ग गोकर्णरंचितानङ्ग घोराशुरपुर धूमकेतु स्मित वाराकरगत रामसेतु स्थित रक्षणलीलाविलास दक्षिणकैलासवास आताम्रलोलनयन एकाम्नमूलभवन आभीलविधुसेवन श्रीशैलशिखरपावन द्राक्षामधुर वाग्गुम्भ रुद्राक्षरुचिरदोस्तम्भ कालकण्ठरुचिघटित- लावण्य नीलकण्ठमखिनिहितकारुण्य सेवापरतन्त्र- पालक शैवागमतन्त्रकारक सर्गस्थितिसंहृतित्रयस्थेय गर्भश्रुतियन्त्रित गायत्र्यनुसंधेय अध्यासितवर- निकुञ्जगृहहिमाहार्य अध्यापितहरिविरिञ्चिमुख शिवाचार्य अर्चितानन्तविहर सच्चिदानन्दशिशिर विजयीभव विजयीभव ॥

दृष्ट्वा कौस्तुभमप्सरोगण-
मपि प्रक्रान्तवादा मिथो