पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/२७

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चतुर्वेदीकोष अनक्षम्, (त्रि. ) चक्ररहित । विना पहिये को गाड़ी मसर (न.) दुनिशुख मार दोष प्रकाश करना | वाच्य विदाचन । गाली । अनक्षि, (न.) मन्द नेत्र । (नि.) मन्द नेत्र- वाला । धन्धा । • अनगारः, ( पुं. ) ऋषि मुनि | तपस्वी | (त्रि.) गृह-रहित | अनग्निः, (पुं. ) श्रौत स्मार्त कर्म होन अग्निहोत्ररहित | संन्यासी | अनग्निका, ( स्त्री. ) रजोवती कन्या । जिसको मासिक धर्म हुश्रा हो । अनघः, (त्रि. ) निर्मल । पापरहित । रम- पीय दुःखरहित । अनङ्गम्, (न.) आकाश | मन | ( पुं. ) मदन । कामदेव । अनङ्गशेखर, (पुं. ) दण्डक नामक एक प्रकार का छन्द । इसमें क्रमशः लघु और गुरु अक्षर रखे जाते हैं । अनङ्गसुहृत् (पुं.) शिव महादेव । अनच्छः, (त्रि.) कलुष | श्रमसच, मैला | अनशनम्, (न. ) व्योम | याकाश | तत्त्व | ( पुं. ) नारायण | अनड्डह, ( पुं. ) साँड़ | वृषभ | बैल । डही, (स्त्री.) गौ । अनतिरेकः, (पुं. ) अभेद | अनद्यः, (पुं. ) सफेद सरसों। अनध्यक्षः, (त्रि. ) अध्यक्षभिन्न | अप्रत्यक्ष + अनध्यायः, (पुं. ) अध्ययन के अनुपयुक्त समय पढ़ने के लिये निषिद्ध काल । अननुगतम्, (न.) आत्मतत्त्व | (त्रि.) अनिश्चित । अपरिभाषित | जिसकी कोई परिभाषा न हो । 1 अनन्तः, (पुं. ) केशव | विष्णु । नारायण । देवता । मनुष्य आदि उसके अन्त को नहीं पा सकते। इस कारण विष्णुको "अनन्त " | २६ कहते हैं। शेषनाग | बलभद्र | नक (पं) अन FESSI (प्र.) के जिसकी इयत्ता न हो । > अनन्त (पं.) सर्वात्मा | परमात्मा | अनन्तसूलः, (पुं. ) कराला नामकी | बच का एक भेद | अनन्तरम्, ( न. ) आनेवाला काल । पश्चात् पश्चात् का काल (वि.) परमात्मा शिक्ष्य समिति | श्रव्यन- हित सटा हुआ | अनन्तरूपः, ( पुं. ) भगवाद | विश्वरूप | ( त्रि. ) अनन्तरूप युद्ध | जिसके अनन्त रूप हो । अनन्तलोक ( पुं. ) अविनाशी लोक | स्वर्गलोक | वनविजयः, (पुं. ) राजा सुधिधिर के शल का नाम । . अनन्तवीर्यः (पुं. ) | श्र वाले कल्प में होने वाले जैनियों का तेईसवाँ तीर्थ हर | अनन्तवत, (न. ) नविशेष | इस व्रत में अनन्त की उपासना कीजाती है। यह अत भादोंकी शुरू चतुर्दशीको होता है। अनन्तशीर्पा, (खी.) वासुकी नाग की पत्नी | अनन्ता, (सी.) विशल्या नाम की श्रोषधि | एक प्रकार की जय। जिसका नाम “ अनन्त मूल " है | पार्वती | पृथिवी | कुश हरीतकी चांगलकी गुहूची । अग्नि मन्थ वृक्ष | अनन्तात्मा (पुं. ) परब्रह्म | विष्णु | देश | काल और वस्तु से अपरिि अनन्यः, (त्रि. ) सर्वभोगनिःस्पृह सब को अद्वैत दृष्टि से देखनेवाला । आत्मा और ब्रह्मको अभिन्न दृष्टि से देखने वाला। एक- तान | किसी एक विषय में लगा हुआ ।