पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/२४८

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प्रेर चतुर्वेदीकोष । २४६ • प्रेरण, (न. ) भेजना। प्रेषू, (क्रि. ) जाना । प्रे-प्रै + ष, (पुं. ) भेजना | पीड़ा पहुँचाना | प्रेष्ठ, (त्रि. ) अति प्यारा | • प्रे-प्रै+प्य, ( पुं. ) दास | टहलुआ । (त्रि.) भेजने योग्य । ( स्त्री. ) जा प्रोक्षण, ( न. ) . चारों ओर जल छिड़कना | मारना । यज्ञार्थ पशु हनन । प्रोक्षित, (त्रि. ) सींचा गया। प्रोञ्छन, ( गु. पोंछना प्रोत, (त्रि.) गुथा हुआ । सियाँ हुआ । पिरोया हुआ । जड़ा हुआ । कपड़ा । प्रोथ, ( पुं. न. ) घोड़े की नाक । कमर | धोती । गर्म । गर्त । घोड़े का मुख । (त्रि.) पथिक । रखा हुआ । प्रोषित, ( त्रि. ) परदेशी प्रोषितभर्तृका, ( स्त्री. ) स्त्री जिसका पति विदेश गया हो । प्रो-प्रौ+ष्ठपद, (पुं. ) भाद्र मास । प्रौढ, (त्रि.) युवा । उद्योगी । निपुण । नायिका विशेष | लक्षू, (क्रि.) खाना | सक्ष, (पुं.) बड़ का वृक्ष । द्वीप विशेष | सव, ( पुं. ) उछलना । तरना | कूदना | मेंडक । मेढ़ा । बानर श्वपच । जल- काक । पाकुड़ का पेड़। कारण्डव पक्षी । शब्द । वैरी । नागरमोथा । खस | झवग, ( पुं. ) बन्दर मेंडक । सूर्य का सारथी । पक्षी विशेष लवङ्ग, ( पुं. ) बन्दर | हिरन | वृक्ष विशेष | सवङ्गम, ( पुं. ) बन्दर । मेंडक । सावन, (न. ) स्नान । बहाव । तूफान | सावित, (त्रि. ) डूबा हुआ। बहा हुआ । श्राद्र । प्लि-प्ली, (क्रि. ) जाना | सीह, ( पुं. ). तिल्ली का रोग । लर्क । फीहा । फण. प्लु, (क्रि. ) फरकना | उछल कर जाना । प्लुत, ( न. ) झपट कर जाना । घोड़े की चाल । ह्रस्व से तिगुने समय में जाने वाला अक्षर । प्लुष, (.क्रि. ) जलाना । प्लुष्ट, (त्रि. ) जला हुआ । प्लोष, (पुं. ) जलन | जलाना । प्लोत, ( पु. ) पट्टी | कपड़ा । प्सा, (क्रि. ) खाना प्सा, ( सं . ) भोजन । भूख प्लात, (त्रि.) खाया हुआ | प्सुर, ( गु. ) प्यारा सुन्दर साकार । आकार युक्त | फ, (न. ) रूखा बोल । फूत्कार । फूँक | झन्झा वात | जमुहाई । साफल्य | रहस्यमय अनुष्ठान | व्यर्थः की बकवाद | गर्मीीं । उन्नति । फक्कू, (क्रि.) भूल करना। धीरे धीरे जाना। पहले ही से ( विना समझ बूझे ) कोई मत स्थिर कर लेना । फक्क, (पं.) खज | पङ्ग फक्किका, ( स्त्री. ) निर्णय के लिये पूर्व पक्ष । छल । डाह । कौमुदी की क्लिष्ट पंक्तियाँ । “ कठिनदीक्षितकौमुदिफक्किका, 29 दहति छात्रवधूहृदयं सदा । सुभगरूपधरे सखि कौमुदि, त्वत्समा न हि वैरिण मामपि ॥ फट्, ( [अव्य. ) योग | विनाश | विध्वंस | तंत्र में प्रायः इस शब्द का प्रयोग होता है । यथा “ अस्त्राय फट् I फट, (पुं.) साँप का फन । फाडङ्गा, (स्त्री.) टीढ़ी फरणं, (क्रि. ) जाना । अपने आप उपजना | फण, (पुं. ) साँप का फन । फण-न+धर, ( पुं. ) साँप | शिव ।