पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/१४

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चतुर्वेदीकोष । १३ • ईश्वर | बकरा । मेषराशि । कामदेव | जिसका जन्म न हो । अजकर्णः, (पुं. ) वृक्षविशेष । पिपसाल वृक्ष । इस के पत्ते बकरे के कान के समान लम्बे होते हैं । अजकवम्, (न. पुं.) शिव का धनुष | जिस में ब्रह्मा और विष्णु बाण बने थे । अंजकावः, (न. पुं.) शिव का धनुष । जो ब्रह्मा और विष्णु की रक्षा करता है। अजक्षीर, (न. ) बकरी का दूध । अजगः, (पुं. ) विष्णु, श्रग्नि । श्रजगन्धा, (स्त्री.) श्रमोद | औषधविशेष | अजगन्धिका, ( स्त्री. ) शाकविशेष | बाबुई शाक | अजगन्धिनी, (स्त्री.) अजङ्ग । गाडरसींगी । अजगर, ( पुं. ) सर्प विशेष | बड़ा साँप | भेजघन्य, (त्रि.) उत्तम । श्रेष्ठ | जो नीच न हो । अजजीविक, (त्रि. ) श्रजा से जीनेवाला, बकरी का चरवाहा, जो बकरियों को चरा कर जीता है। अजटा, ( श्री. ) आमलकी वृश्च । कन्द रहित वृक्ष । अजध्या, ( श्री. ) स्वर्ण भूमिका | स्वर्ण- पुष्पिका | बकरोंका समूह | अजन्त, ( पुं. ) स्वरान्त | जिन शब्दों के अन्त में स्वर हो । श्रजदराडी, (स्त्री.) ब्रह्मदण्डी वृक्ष । अजननि:, शाप के अर्थ में इसका प्रयोग होता है। जन्मरहित । अनुत्पत्ति आक्रोशन । अजनयोनिः, (पुं.) ब्रह्मा | प्रजापति | अजनाभ, (पुं.) भारतवर्ष का नाम । इस भारतवर्ष का नाम पहिलं " अजनाभ था। जब इस के राजा भरत हुए तब से इस का नाम भारत पड़ा । " श्रजन्य, (न.) उत्पात | शुभाशुभसूचक | देव- कृत उत्पात | उपद्रव | अजं अजप, (पं.) अस्पष्ट पढ़नेवाला । जप न करनेवाला । (पुं.) छाग पालन करनेवाला । बकरे चरानेवाला । अजपा, (स्त्री.) देवताविशेष | गायत्री विशेष | जिसका जप श्वास प्रश्वास के साथ स्वयं होता रहता है । श्रजपात्, (पुं.) सूर्वाभाद्रपद नक्षत्र | ग्यारह "रुद्रों में से एक रुद्र का नाम । अजभक्ष, (पुं.) बबुर वृक्ष की पत्तियां | इन पत्तियों को बकरे प्रसन्नतापूर्वक खाते हैं । अजमीढ़, (पु.) अजमेर नामक नगर । उस का राजा युधिष्ठिर । अजमोदा, ( श्री. ) अजवाइन । उमगन्धा । अजम्भः, ( पुं. ) भेक । मेंढक | ( त्रि. ) दन्त- रहित । जिसके दाँत न हों। श्रजयः, (पुं. ) पराजय | भाँग । बङ्गाल के बीरभूम के पास के एक नद का नाम । अजय्यम्, (त्रि. ) अजेय शत्रु । जो जीता न जा सके । + अजर्य्यम्, (न.) मित्रता | सङ्ग । अजलोमन्, ( पुं. ) वृश्वविशेष | इसकी मञ्जरी बकरी के लोम के समान होती है । अजवीथी, ( स्त्री. ) छायापथविशेष । जो आकाशगङ्गा के नाम से प्रसिद्ध है । अजङ्गी ( स्त्री. ) वृश्चविशेष | गाडरसींग | इसके फल भेंड़े के सींग के समान होते हैं। अजस्त्रम्, (न. ) निरन्तर | सन्तत | सदा | सर्वदा । त्रिकाल में स्थितिशील । श्रजहत्स्वार्था, ( स्त्री. ) शब्दशक्तिविशेष | लक्षणा का एक भेद | उपादान लक्षणा । जो अपने अर्थ को न छोड़कर दूसरे अर्थ का बोध करे । अजहलक्षणा, (स्त्री.) अजहत्स्वार्था नाम की लक्षणा । जो अपने वाच्य अर्थ को न छोड़े और वाच्यार्थसम्बन्धी दूसरे अर्थ का भी बोध न करे । अजहलिङ्ग, ( पुं. ) वह शब्द जो अपने