पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/६९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

११६० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते यथा कस्मिन् घटिकात्मके कल्पगते चद्रस्य भगणशेष ४१०५ भवेत् । यदि १३७ दिनैश्चन्द्रभगणाः पञ्च ५ भवन्ति । अत्र यदि दिनानि x६०= १३७x६० ४१०५ =८२० कृत्वा हरः कल्प्यते तदा सच्छेदमुदृिष्टभगणाशेषम्= , पूर्ववत् दि ८२२ नज भगणशेषम्=५। ततः खेच दिनज शेषहृत' मित्यादिना ऽल्पाग्र' सच्छेदम् = ६ । अथ सच्छेदे शेषे ४१०५ , ६ अत्र शेषयोः सच्छेदयोः पञ्चभिरपवत्र्य जाते ८२२० ५ नवीने सच्छेदेशेषे ८२१ अधिकाग्रभागहारादूनाग्रच्छेद भाजितादित्या दना प्रथमशेषम्=० । तच्छेदः=१, शून्येनेष्टेन गुणकारेण गुणितं प्रथमशेषं लब्धं शेषान्तरेणयुतं ८२१ तच्छेदेन १ हृतं लब्धं निरग्रम् =८२१ अत्र पूर्वलब्ध्यभावात् इदं घटयात्मकंकल्पगतं तत् षष्टिभक्त कल्पगतं दिनादि ।॥१३॥४१॥ अत्रोपपत्तिः । ‘भगणादिशेषमग्र' छेदहृतं खं च दिनजशेषहृत'मित्यादेरुपपत्तिदर्शनस्फुटेति ।८।। अब विशेष कहते हैं। हेि. भा-भगणादि शेष को यदि जिस किसी इष्ट से गुणा करते हैं तो दो शेष और (सदृशच्छेदों) को करके सदृशच्छेद से भक्त उन दोनों शेषों को करके ‘भगणादि शेष मग्र' छेदहृतं’ इत्यादि से उसका घात सम्बन्धी अग्र (शेष) साधन करना चाहिये तब वह अग्र तज्जातीय कल्पगत होता है उससे अहर्गणादि होता है जैसे किसी घटिकात्मक कल्पगत में चन्द्र का भगण शेष ४१०५ होता है। यदि १३७ दिनों में चन्द्र भगण ५ होता है। यहां यदि इनको दिन १३७x६०=८२२० करके हरकल्पना की जाय तब सच्छेद (छेदसहित) ४१०५ उद्दिष्ट भगण शेष = , पूर्ववत् दिनज भगण शेष =५ तब ‘खं च दिनजशेषहृतं ’ .८२२० इत्यादि से सच्छेद अल्पाग्र= ८२२० ५ ८२१ पांच से अपवत्र्तन देने से नवीन छेद सहित शेषद्वय .. * - ‘ अधिकाग्रभागहारा दूनाग्र च्छेद भाजितात्’ इन्यादि से प्रथम शेष= १० । उसका छेद =१, शून्य इष्ट गुणकार से गुणित प्रथम शेष में शेषान्तर ८२१ को जोड़ देने से जो होता है उसको छेद से भाग देने से लब्ध निरग्र = ८२१, यहां पूर्वलब्धि के प्रभाव के कारण वल्ली --, यह ८२१ घटयात्मक कल्प गत है इसको साठ से भाग देने से कल्पगत दिनादि ।॥ १३॥४१ इति ।