महाभारतम्-09-शल्यपर्व-060

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महाभारतम्-09-शल्यपर्व-060
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भीमसेनेन दुर्योधनापनयानुस्मारणपूर्वकं वामपादेन तच्छिरस्ताडनम्।। 1 ।। युधिष्ठिरेण दुर्योधनसमाश्वासनम्।। 2 ।।

सञ्जय उवाच। 9-60-1x
तं पातितं ततो दृष्ट्वा महासालमिवोद्गतम्।
प्रहृष्टमनसः सर्वे बभूवुस्तत्र पाण्डवाः।।
9-60-1a
9-60-1b
उन्मत्तमिव मातङ्गं सिंहेन विनिपातितम्।
ददृशुर्हृष्टरोमाणः सर्वे ते चापि सोमकाः।।
9-60-2a
9-60-2b
ततो दुर्योधनं हत्वा भीमसेनः प्रतापवान्।
पातितं कौरवेन्द्रं तमुपगम्येदमब्रवीत्।।
9-60-3a
9-60-3b
गौर्गौरिति पुरा मन्द द्रौपदीमेकवाससम्।
यत्सभायां हसन्नस्मांस्तदा वदसि दुर्मते।
तस्यावहासस्य फलमद्य त्वं समवाप्नुहि।।
9-60-4a
9-60-4b
9-60-4c
एवमुक्त्वा स वामेन पदा मौलिमुपास्पृशत्।
शिरश्च राजसिंहस्य पादेन समलोडयत्।।
9-60-5a
9-60-5b
तथैव क्रोधसंरक्तो भीमः परबलार्दनः।
पुनरेवाब्रवीद्वाक्यं यत्तच्छृणु नराधिप।।
9-60-6a
9-60-6b
येऽस्मान्पुरा प्रनृत्यन्ति मूढा गौरिति गौरिति।
तान्वयं प्रतिनृत्यामः पुनर्गौरिति गौरिति।।
9-60-7a
9-60-7b
नास्माकं निकृतिर्वह्निर्नाक्षद्यूतं न वञ्चना।
स्वबाहुबलमाश्रित्य प्रबाधामो वयं रिपून्।।
9-60-8a
9-60-8b
सोऽवाप्य वैरस्य चिरस्य पारं
वृकोदरः प्राह शनैः प्रहस्य।
युधिष्ठिरं केशवसृञ्जयांश्च
धनञ्जयं माद्रवतीसुतौ च।।
9-60-9a
9-60-9b
9-60-9c
9-60-9d
रजस्वला द्रौपदीमानयन्ते
ये चाप्यकुर्वन्त सदस्यवस्त्राम्।
0
रणे हतांस्तपसा याज्ञसेन्याः।।
9-60-10a
9-60-10b
9-60-10cतान्पश्यध्वं पाण्डवैर्धार्तराष्ट्रान्
9-60-10d
ये नः पुरा षण्ढतिलानवोचन्
क्रूरा राज्ञो धृतराष्ट्रस्य पुत्राः।
ते नो हताः सगणाः सानुबन्धाः
कामं स्वर्गं नरकं वा व्रजामः।।
9-60-11a
9-60-11b
9-60-11c
9-60-11d
पुनश्च राज्ञः पतितस्य भूमौ
स तां गदां स्कन्धगतां प्रगृह्य।
वामेन पादेन शिरः प्रमृद्य
दुर्योधनं नैकृतिकेत्यवोचत्।।
9-60-12a
9-60-12b
9-60-12c
9-60-12d
हृष्टेन राजन्कुरुपार्थिवस्य
क्षुद्रात्मना भीमसेनेन पादम्।
दृष्ट्वा कृतं मूर्धनि नाभ्यनन्दन्
धर्मात्मानः सोमकानां प्रबर्हाः।।
9-60-13a
9-60-13b
9-60-13c
9-60-13d
तव पुत्रं तथा हत्वा कत्थमानं वृकोदरम्।
नृत्यमानं च बहुशो धर्मराजोऽब्रवीदिदम्।।
9-60-14a
9-60-14b
गतोऽसि वैरस्यानृण्यं प्रतिज्ञा पूरिता त्वया।
शुभेनाथाशुभेनैव कर्मणा विरमाधुना।।
9-60-15a
9-60-15b
मा शिरोऽस्य पदाऽमर्दीर्मा धर्मस्तेऽतिगो भवेत्।
राजा ज्ञातिर्हतश्चायं नैतन्न्याय्यं तवानघ।।
9-60-16a
9-60-16b
एकादशचमूनाथं कुरूणामधिपं तथा।
मास्प्राक्षीर्भीम पादेन राजानं ज्ञातिमेव च।।
9-60-17a
9-60-17b
हतबन्धुर्हतामात्यो भ्रष्टसैन्यो हतो मृधे।
सर्वाकारेण शोच्योऽयं नावहास्योऽयमीश्वरः।।
9-60-18a
9-60-18b
विध्वस्तोऽयं हतामात्यो हतबन्धुर्हतात्मजः।
उत्सन्नपिण्डो भ्राता च नैतन्न्याय्यं कृतं त्वया।।
9-60-19a
9-60-19b
धार्मिको भीमसेनोऽसावित्याहुस्त्वां पुरा जनाः।
स कस्माद्भीमसेन त्वं राजानमधितिष्ठसि।।
9-60-20a
9-60-20b
इत्युक्त्वा भीमसेनं तु साश्रुकण्ठो युधिष्ठिरः।
उपसृत्याब्रवीद्दीनो दुर्योधनमरिन्दमम्।।
9-60-21a
9-60-21b
तात मन्युर्न ते कार्यो नात्मा शोच्यस्त्वया तथा।
नूनं पूर्वकृतं कर्म सुघोरमनुभूयते।।
9-60-22a
9-60-22b
धात्रोपदिष्टं विषमं नूनं फलमसंस्कृतम्।
यद्वयं त्वां जिघांसामस्त्वं चास्मान्कुरुसत्तम।।
9-60-23a
9-60-23b
आत्मनो ह्यपराधेन महद्व्यसनमीहशम्।
प्राप्तवानसि यल्लोभान्मदाद्बाल्याच्च भारत।।
9-60-24a
9-60-24b
घातयित्वा वयस्यांश्च भ्रातॄनथ पितॄंस्तथा।
पुत्रान्पौत्रांस्तथा चान्यांस्ततोसि निधनं गतः।।
9-60-25a
9-60-25b
तवापराधादस्माभिर्भ्रातरस्ते निपातिताः।
निहता ज्ञातयश्चापि दिष्टं मन्ये दुरत्ययम्।।
9-60-26a
9-60-26b
[आत्मा न शोचनीयस्ते श्लाघ्यो मृत्युस्तवानघ।
वयमेवाधुना शोच्याः सर्वावस्थासु कौरव।।
9-60-27a
9-60-27b
कृपणं वर्तयिष्यामस्तैर्हीना बन्धुभिः प्रियैः।
भ्रातॄणां चैव पुत्राणां तथा वै शोकविह्वलाः।।
9-60-28a
9-60-28b
कथं द्रक्ष्यामि विधवा वधूः शोकपरिप्लुताः।
त्वमेकः सुस्थितो राजन्स्वर्गे ते निलयो ध्रुवः।
वयं नरकसंज्ञं वै दुःखं प्राप्स्याम दारुणम्।।]
9-60-29a
9-60-29b
9-60-29c
स्नुषाश्च प्रस्नुषाश्चैव धृतराष्ट्रस्य विह्वलाः।
गर्हयिष्यन्ति नो नूनं विधवाः शोककर्शिताः।।
9-60-30a
9-60-30b
सञ्जय उवाच। 9-60-31x
एवमुक्त्वा सुदुःखार्तो निशश्वास स पार्थिवः।
विललाप चिरं चापि धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।।
9-60-31a
9-60-31b
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि
गदायुद्धपर्वणि षष्टितमोऽध्यायः।। 60 ।।
शल्यपर्व-059 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शल्यपर्व-061