महाभारतम्-08-कर्णपर्व-041
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सेनाद्वये व्यूहरचनावर्णनम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 8-41-1x |
ततः परानीकभिदं व्यूहमप्रतिमं महत्। समीक्ष्य कर्णः पार्थानां धृष्टद्युम्नाभिरक्षितम्।। | 8-41-1a 8-41-1b |
प्रययौ रथघोषेण सिंहनादरवेण च। वादित्राणां च निनदैः कम्पयन्निव मेदिनीम्।। | 8-41-2a 8-41-2b |
वेपमान इव क्रोधाद्युद्वशौण्डः परन्तपः। प्रतिव्यूह्य महातेजा यथावद्भरतर्षभ।। | 8-41-3a 8-41-3b |
व्यधमत्पाण्डवीं सेनामासुरीं मघवानिव। युधिष्ठिरं चाभ्यहनदपसव्यं चकारह।। | 8-41-4a 8-41-4b |
कर्णस्य रथघोषेण मौर्वीनिष्पेषणेन च। सुसङ्ग्राहेण रश्मीनां समकम्पन्त सृञ्जयाः।। | 8-41-5a 8-41-5b |
तानि सर्वाणि सैन्यानि कर्ण दृष्ट्वा विशाम्पते। बभूवुः सम्प्रहृष्टानि तावकानि युयुत्सया।। | 8-41-6a 8-41-6b |
अश्रूयन्त ततो वाचस्तावकानां विशाम्पते। कर्णार्जुनमहायुद्धमेतदद्य भविष्यति।। | 8-41-7a 8-41-7b |
अद्य दुर्योधनो राजा हतामित्रो भविष्यति। अद्य कर्णं रणे दृष्ट्वा फल्गुनो विद्रविष्यति।। | 8-41-8a 8-41-8b |
अद्य तावद्वयं युद्धे कर्णस्यैवानुगामिनः। कर्णबाणमयं भीमं युद्धं द्रक्ष्याम संयुगे।। | 8-41-9a 8-41-9b |
चिरकालेप्सितमिदमद्येदानीं भविष्यति। अद्य द्रक्ष्याम सङ्ग्रामं घोरं देवासुरोपमम्।। | 8-41-10a 8-41-10b |
अद्येदानीं महद्युद्धं भविष्यति भयानकम्। अद्येदानीं जयो नित्यमेकस्यैकस्य वा रणे।। | 8-41-11a 8-41-11b |
अर्जुनं किल राधेयो वधिष्यति महारणे। अथवा कं नरं लोके न स्पृशन्ति मनोरथाः।। | 8-41-12a 8-41-12b |
इत्युक्त्वा विविधा वाचः कुरवः कुरुनन्दन। आजघ्नुः पटहांश्चैव तूर्यांश्चैव सहस्रशः।। | 8-41-13a 8-41-13b |
भेरीनादांश्च विविधान्सिंहनादांश्च पुष्कलान्। मुरजानां महाशब्दानानकानां महारवान्।। | 8-41-14a 8-41-14b |
नृत्यमानाश्च बहुशस्तर्जमानाश्च मारिष। अन्योन्यमभ्ययुर्युद्धे युद्धरङ्गगता नराः।। | 8-41-15a 8-41-15b |
तेषां पदाता नागानां पादरक्षाः समन्ततः। पट्टसासिधराः शूराश्चापबाणमुसुण्ठिनः।। | 8-41-16a 8-41-16b |
भिण्डिपालधराश्चैव शूरलहस्ताः सुचक्रिणः। तेषां समागमो घोरो देवासुररणोपमः।। | 8-41-17a 8-41-17b |
धृतराष्ट्रं उवाच। | 8-41-18x |
कथं सञ्जय राधेयः प्रत्यव्यूहत पाण्डवान्। धृष्टद्युम्नमुखान्सङ्ख्ये भीमसेनाभिरक्षितान्। सर्वानेव महेष्वासानजय्यानमरैरपि।। | 8-41-18a 8-41-18b 8-41-18c |
के च प्रपक्षौ पक्षौ वा मम सैन्यस्य सञ्जय। प्रविभज्य यथान्यायमवतस्थुः सुदंशिताः।। | 8-41-19a 8-41-19b |
कथं पाण्डुसुताश्चापि प्रत्यव्यूहन्त मामकान्। कथं चैतन्महद्युद्धं प्रावर्तत सुदारुणम्।। | 8-41-20a 8-41-20b |
क्व च बीभत्सुरभवद्यत्कर्णोऽयाद्युधिष्ठिरम्। को ह्यर्जुनस्य सान्निध्ये शक्तो जेतुं युधिष्ठिरम्।। | 8-41-21a 8-41-21b |
सर्वभूतानि यो ह्येकः खाण्डवे जितबान्पुरा। कस्तमन्यस्तु राधेयात्प्रतियुध्येज्जिजीविषुः।। | 8-41-22a 8-41-22b |
सञ्जय उवाच। | 8-41-23x |
शृणु व्यूहस्य रचनामर्जुनश्च यथा गतः। परिवार्य नृपान्सर्वान्सङ्ग्रामश्चाभवद्यथा।। | 8-41-23a 8-41-23b |
कृपः शारद्वतो राजन्मागधाश्च तरस्विनः। सात्वतः कृतवर्मा च दक्षिणं पक्षमाश्रिताः।। | 8-41-24a 8-41-24b |
तेषां प्रपक्षे शकुनिरुलूकश्च महारथः। सादिभिर्विमलप्रासैस्तदानीमभ्यरक्षताम्।। | 8-41-25a 8-41-25b |
गान्धारैश्चाप्यसम्भ्रान्तैः पार्वतीयैश्च दुर्जयैः। शलभानामिव व्रातैः पिशाचैरिव दुर्दृशैः।। | 8-41-26a 8-41-26b |
चतुर्विंशत्सहस्राणि रथानामनिवर्तिनाम्। संशप्तका युद्वशौण्डा वामपाश्वमपालयन्।। | 8-41-27a 8-41-27b |
समन्वितास्तव सुतैः कृष्णार्जुनजिघांसवः। तेषां प्रपक्षाः काम्भोजाः शकाश्च यवनैः सह।। | 8-41-28a 8-41-28b |
निदेशात्सूतपुत्रस्य सरथाश्वेभपत्तयः। आह्वयन्तोऽर्जुनं तस्थुः केशवं च महाबलम्।। | 8-41-29a 8-41-29b |
ततः सेनामुखे कर्णोऽप्यवातिष्ठत दंशितः। चित्रवर्माङ्गदः स्रग्वी पालयन्वाहिनीमुखम्।। | 8-41-30a 8-41-30b |
रक्षमाणैः सुसंरब्धैः पुत्रैः शस्त्रभृतां वरः। वाहिनीं प्रमुखे वीरः सम्प्रकर्षन्नशोभत।। | 8-41-31a 8-41-31b |
अशोकस्तु महाबाहुः सूर्यवैश्वानरप्रभः। महाद्विपस्कन्धगतः पिङ्गाक्षः प्रियदर्शनः। दुःशासनो वृतः सैन्यैः स्थितो व्यूहस्य पृष्ठतः।। | 8-41-32a 8-41-32b 8-41-32c |
तन्मध्ये स महाबाहुः स्वयं दुर्योधनो नृपः। चित्राश्वैश्चित्रसन्नाहैः सोदर्यैरभिरक्षितः।। | 8-41-33a 8-41-33b |
रक्ष्यमाणो महावीर्यैः सहितैर्मद्रकेकयैः। अशोभत महाराज देवैरिव शतक्रतुः।। | 8-41-34a 8-41-34b |
अश्वत्थामा कुरूणां च ये प्रवीरा महारथाः। नित्यमत्ताश्च मातङ्गाः शूरैर्म्लेच्छैः समन्विताः। अन्वयुस्तद्रथानीकं क्षरन्त इव तोयदाः।। | 8-41-35a 8-41-35b 8-41-35c |
ते ध्वजैर्वैजयन्तीभिर्ज्वलद्भिः परमायुधैः। सादिभिश्चास्थिता रेजुर्द्रुमवन्त इवाचलाः।। | 8-41-36a 8-41-36b |
तेषां पदातिनागानां पादरक्षाः सहस्रशः। पट्टसासिधराः शूरा बभूवुरनिवर्तिनः।। | 8-41-37a 8-41-37b |
सादिभिः स्यन्दनैर्नागैरधिकं समलङ्कृतैः। स व्यूहराजो विबभौ देवासुरचमूपमः।। | 8-41-38a 8-41-38b |
बार्हस्पत्यः सुविहितो नायकेन विपश्चिता। नृत्यतीव महाव्यूहः परेषां भयमादधत्।। | 8-41-39a 8-41-39b |
तस्य पक्षप्रपक्षेभ्यो निष्पतन्ति युयुत्सवः। हस्त्यश्वरथमातङ्गाः प्रावृषीव बलाहकाः।। | 8-41-40a 8-41-40b |
ततः सेनामुखे कर्णं दृष्ट्वा राजा युधिष्ठिरः। धनञ्जयममित्रघ्नमेकवीरमुवाच ह।। | 8-41-41a 8-41-41b |
पश्यार्जुन महाव्यूहं कर्णेन विहितं रणे। युक्तं पक्षैः प्रपक्षैश्च परानीकं प्रकाशते।। | 8-41-42a 8-41-42b |
तत्समीपगतं ह्येतत्प्रत्यमित्रं महद्बूलम्। यथा नाभिभवत्यस्मांस्तथा नीतिर्विधीयताम्।। | 8-41-43a 8-41-43b |
सञ्जय उवाच। | 8-41-44x |
एवमुक्तोऽर्जुनो राज्ञा प्राञ्जलिर्नृपमब्रवीत्।। | 8-41-44a |
यथा यथा भवानाह तत्तथा न तदन्यथा। यत्तस्य विहितं कार्यं तत्करिष्यामि सुव्रत। प्रधानमथ चैवास्य विनाशं च करोम्यहम्।। | 8-41-45a 8-41-45b 8-41-45c |
तस्मात्त्वं जहि राधेयं भीमसेनः सुयोधनम्। वृषसेनं च नकुलः सहदेवोऽपि सौबलम्।। | 8-41-46a 8-41-46b |
दुःशानं शतानीको हार्दिक्यं शिनिपुङ्गवः। धृष्टद्युम्नो द्रोणसुतं स्वयं योत्स्याम्यहं कृपम्।। | 8-41-47a 8-41-47b |
द्रौपदेया धार्तराष्ट्राञ्शिष्टान्सह शिखण्डिना। ते ते च तांस्तानहितानस्माकं घ्न्तु मामकाः।। | 8-41-48a 8-41-48b |
सञ्जय उवाच। | 8-41-49x |
इत्युक्तो धर्मराजेन तथेत्युक्त्वा धनञ्जयः। व्यादिदेश स्वसैन्यानि स्वयं चागाच्चमूमुखम्।। | 8-41-49a 8-41-49b |
धनञ्जयो महाराज दक्षिणं पक्षमास्थितः। भीमसेनो महाबाहुर्वामं पक्षमुपाश्रितः।। | 8-41-50a 8-41-50b |
सात्यकिर्द्रौपदेयाश्च स्वयं राजा च पाण्डवः। व्यूहस्य प्रमुखे तस्थुः स्वेनानीकेन संवृताः।। | 8-41-51a 8-41-51b |
स्वबलेनारिसैन्यं तत्प्रत्यवस्थाप्य पाण्डवः। प्रत्यव्यूहत्पुरस्कृत्य धृष्टद्युम्नशिखण्डिनौ।। | 8-41-52a 8-41-52b |
तत्सादिनागकलिलं पदातिरथसङ्कुलम्। धृष्टद्युम्नमुखं घोरमशोभत महद्बलम्।। | 8-41-53a 8-41-53b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि एकचत्वारिंशोऽध्यायः।। 41 ।। |
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