महाभारतम्-02-सभापर्व-039

विकिस्रोतः तः
← सभापर्व-038 महाभारतम्
द्वितीयपर्व
महाभारतम्-02-सभापर्व-039
वेदव्यासः
सभापर्व-040 →
  1. 001
  2. 002
  3. 003
  4. 004
  5. 005
  6. 006
  7. 007
  8. 008
  9. 009
  10. 010
  11. 011
  12. 012
  13. 013
  14. 014
  15. 015
  16. 016
  17. 017
  18. 018
  19. 019
  20. 020
  21. 021
  22. 022
  23. 023
  24. 024
  25. 025
  26. 026
  27. 027
  28. 028
  29. 029
  30. 030
  31. 031
  32. 032
  33. 033
  34. 034
  35. 035
  36. 036
  37. 037
  38. 038
  39. 039
  40. 040
  41. 041
  42. 042
  43. 043
  44. 044
  45. 045
  46. 046
  47. 047
  48. 048
  49. 049
  50. 050
  51. 051
  52. 052
  53. 053
  54. 054
  55. 055
  56. 056
  57. 057
  58. 058
  59. 059
  60. 060
  61. 061
  62. 062
  63. 063
  64. 064
  65. 065
  66. 066
  67. 067
  68. 068
  69. 069
  70. 070
  71. 071
  72. 072
  73. 073
  74. 074
  75. 075
  76. 076
  77. 077
  78. 078
  79. 079
  80. 080
  81. 081
  82. 082
  83. 083
  84. 084
  85. 085
  86. 086
  87. 087
  88. 088
  89. 089
  90. 090
  91. 091
  92. 092
  93. 093
  94. 094
  95. 095
  96. 096
  97. 097
  98. 098
  99. 099
  100. 100
  101. 101
  102. 102
  103. 103

अभिषेचनदिने ब्राह्मणादीनामन्तर्वेदिप्रवेशः।। 1।।
भूभारक्षपणे नारदचिन्तनम्।। 2।।
पूर्वं सङ्क्षिप्योक्तायाः कृष्णागमनकथायाः किञ्चिद्विस्तरेण कथनम्।। 3।।
सहदेवेन श्रीकृष्णस्याग्रपूजाकरणम्।। 4।।
शिशुपालेन श्रीकृष्णस्याग्रपूजाऽसहनम्।। 5।।

वैशम्पायन उवाच।। 2-39-1x
ततोऽभिषेचनीयेऽह्नि ब्राह्मणा राजभिः सह।
अन्तर्वेदीं प्रविविशुः सत्कारार्हा महर्षयः।।
2-39-1a
2-39-1b
नारदप्रमुखास्तस्यामन्तर्वेद्यां महात्मनः।
समासीनाः शुशुभिरे सहराजर्षिभिस्तदा।।
2-39-2a
2-39-2b
समेता ब्रह्मभवने देवा देवर्षयस्तथा।
कर्मान्तरमुपासन्तो जजल्पुरमितौजसः।।
2-39-3a
2-39-3b
एवमेतन्न चाप्येवमेवं चैतन्न चान्यथा।
इत्यूचुर्बहवस्तत्र वितण्डां वै परस्परम्।।
2-39-4a
2-39-4b
कृशानर्थांस्ततः केचिदकृशांस्तत्र कुर्वते।
अकृशांश्च कृशांश्चक्रुर्हेतुभिः शास्त्रनिश्चयैः।।
2-39-5a
2-39-5b
तत्र मेधाविनः केचिदर्थमन्यैरुदीरितम्।
विचिक्षिपुर्यथा श्येना नभोगतमिवामिषम्।।
2-39-6a
2-39-6b
केचिद्धर्मार्थकुशलाः केचित्तत्र महाव्रताः।
रेमिरे कथयन्तश्च सर्वभाष्यविदां वराः।।
2-39-7a
2-39-7b
सा वेदिर्वेदसम्पन्नैर्देवद्विजमहर्षिभिः।
आबभासे समाकीर्णा नक्षत्रैर्द्यौरिवायता।।
2-39-8a
2-39-8b
न तस्यां सन्निधौ शूद्रः कश्चिदासीन्न चाव्रती।
अन्तर्वेद्यां तदा राजन्युधिष्ठिरनिवेशने।।
2-39-9a
2-39-9b
तां तु लक्ष्मीवतो लक्ष्मीं तदा यज्ञविधानजाम्।
तुतोष नारदः पश्यन्धर्मराजस्य धीमतः।।
2-39-10a
2-39-10b
अथ चिन्तां समापेदे स मुनिर्मनुजाधिप।
नारदस्तु तदा पश्यन्सर्वक्षत्रसमागमम्।।
2-39-11a
2-39-11b
सस्मार च पुरावृत्तां कथां तां पुरुषर्षभ।
अंशावतरणे याऽसौ ब्रह्मणो भवनेऽभवत्।।
2-39-12a
2-39-12b
देवानां सङ्गमं तं तु विज्ञाय कुरुनन्दन।
नारदः पुण्डरीकाक्षं सस्मार मनसा हरिम्।।
2-39-13a
2-39-13b
साक्षात्स विबुधारिघ्नः क्षत्रे नारायणो विभुः।
प्रतिज्ञां पालयंश्चेमां जातः परपुरञ्जयः।।
2-39-14a
2-39-14b
न्दिदेश पुरा योऽसौ विबुधान्भूतकृत्स्वयम्।
न्योन्यमभिनिघ्नन्तः पुनर्लोकानवाप्स्यथ।।
2-39-15a
2-39-15b
इति नारायणः शम्भुर्भगवान्भूतभावनः।
आदिश्य विबुधान्सर्वानजायत यदुक्षये।।
2-39-16a
2-39-16b
क्षितावन्धकवृष्णीनां वंशे वंशभृतां वरः।
परया शुशुभे लक्ष्म्या नक्षत्राणामिवोडुराट्।।
2-39-17a
2-39-17b
यस्य बाहुबलं सेन्द्राः सुराः सर्व उपासते।
सोयं मानुषवन्नाम हरिरास्तेऽरिमर्दनः।।
2-39-18a
2-39-18b
अहो बत महद्भूतं स्वयम्भूर्यदिदं स्वयम्।
आदास्यति पुनः क्षत्रमेवं बलसमन्वितम्।।
2-39-19a
2-39-19b
इत्येतां नारदश्चिन्तां चिन्तयामास सर्ववित्।
हरिं नारायणं ज्ञात्वा यज्ञैरीज्यं तमीश्वरम्।।
2-39-20a
2-39-20b
तस्मिन्धर्मविदां श्रेष्ठो धर्मराजस्य धीमतः।
महाध्वरे महाबुद्धिस्तस्थौ स बहुमानतः।।
2-39-21a
2-39-21b
`ततः समुदिता मुख्यैर्गुणैर्गुणवतां वराः।
बहवो भावितात्मानः पृथक्पृथगरिन्दमाः।।
2-39-22a
2-39-22b
आत्मकृत्यमिति ज्ञात्वा पाञ्चालास्तत्र सर्वशः।
समीयुर्वृष्णयश्चैव तदाऽनीकाग्रहारिणः।।
2-39-23a
2-39-23b
दाराः सजनामात्या वहन्तो रत्नसञ्चयान्।
विकृष्टत्वाच्च देशस्य गुरुभारतया च ते।।
2-39-24a
2-39-24b
ययुः प्रमुदिताः पश्चाद्भगवन्तं समन्वयुः।
बलशेषं समुदितं परिगृह्य समन्ततः।।
2-39-25a
2-39-25b
अजश्चक्रायुधः शौरिरमित्रगणमर्दनः।
बलाधिकारे निक्षिप्य संमान्यानकदुन्दुभिम्।।
2-39-26a
2-39-26b
सम्प्रायाद्यादवश्रेष्ठो जयमाने युधिष्ठिरे।
उच्चावचमुपादाय धर्मराजाय माधवः।।
2-39-27a
2-39-27b
धनौघं पुरतः कृत्वा खाण्डवप्रस्थमाययौ।
तत्र यज्ञगतान्पश्यंश्चैद्यवर्गसमागतान्।।
2-39-28a
2-39-28b
भूमिपालगणान्सर्वान्सप्रभानिव तोयदान्।
घकायान्निवसतो यूथपानिव यूथपः।।
2-39-29a
2-39-29b
बलिनः सिंहसङ्काशान्महीमावृत्य तिष्ठतः।
ततो जनौघसम्बाधं राजसागरमव्ययम्।।
2-39-30a
2-39-30b
नादयन्रथघोषेण ह्युपायान्मधुसूदनः।
असूर्यमिव सूर्येण निवातमिव वायुना।।
2-39-31a
2-39-31b
कृष्णेन समुपेतेन जहर्षे भारतं पुरम्।
ब्राह्मणक्षत्रियाणां तु पूजार्थं ह्यर्थधर्मवित्।।
2-39-32a
2-39-32b
सहदेवो विशेषज्ञो माद्रीपुत्रः कृतोऽभवत्।
भगवन्तं तु भूतानां भास्वन्तमिव तेजसा।।
2-39-33a
2-39-33b
विशन्तं यज्ञभूमिं तां सितस्यावरजं प्रभुम्।
तेजोराशिमृषिं विप्रमदृश्यं वै विजानताम्।।
2-39-34a
2-39-34b
वयोधिकानां वृद्धानां मार्गमात्मनि तिष्ठताम्।
जगतस्तस्थुषश्चैव प्रभवाप्ययमच्युतम्।।
2-39-35a
2-39-35b
अनन्तमन्तं शत्रूणाममित्रगणमर्दनम्।
प्रभवं सर्वभूतानामापत्स्वभयमच्युतम्।।
2-39-36a
2-39-36b
भविष्यं भावनं भूतं द्वारवत्यामरिन्दमम्।
स दृष्ट्वा कृष्णमायान्तं प्रतिपूज्यामितौजसम्।।
2-39-37a
2-39-37b
यथार्हं केशवे वृत्तिं प्रत्यपद्यत पाण्डवः।
ज्यैष्ठ्यकानिष्ठ्यसंयोगं सम्प्रधार्य गुणागुणैः।।
2-39-38a
2-39-38b
आरिराधयिषुर्धर्मः पूजयित्वा द्विजोत्तमान्।
महदादित्यसङ्काशमासनं च जगत्पतेः।
ददौ नासादितं कैश्चित्तस्मिन्नुपविवेश सः'।।
2-39-39a
2-39-39b
2-39-40c
ततो भीष्मोऽब्रवीद्राजन्धर्मराजं युधिष्ठिरम्।
क्रियतामर्हणं राज्ञां यथार्हमिति भारत।।
2-39-40a
2-39-40b
आचार्यमृत्विजं चैव संयुजं च युधिष्ठिर।
स्नातकं च प्रियं प्राहुः षडर्घार्हान्नृपं तथा।।
2-39-41a
2-39-41b
एतानर्घ्यानभिगतानाहुः संवत्सरोषितान्।
त इमे कालपूगस्य महतोऽस्मानुपागताः।।
2-39-42a
2-39-42b
एषामेकैकशो राजन्नर्घ आनीयतामिति।
अथ तैषां वरिष्ठाय समर्थायोपनीयताम्।।
2-39-43a
2-39-43b
युधिष्ठिर उवाच।। 2-39-44x
कस्मै भवान्मन्यतेऽर्घमेकस्मै कुरुनन्दन।
उपनीयमानं युक्तं च तन्मे ब्रूहि पितामह।।
2-39-44a
2-39-44b
वैशम्पायन उवाच।। 2-39-45x
ततो भीष्मः शान्तनवो बुद्ध्या निश्चित्य वीर्यवान्।
वार्ष्णेयं मन्यते कृष्णमर्हणीयतमं भुवि।।
2-39-45a
2-39-45b
भीष्ण उवाच।। 2-39-46x
एष ह्येषां समस्तानां तेजोबलपराक्रमैः।
मध्ये तपन्निवाभाति ज्योतिषामिव भास्करः।।
2-39-46a
2-39-46b
असूर्यमिव सूर्येण निर्वातमिव वायुना।
भासितं ह्लादितं चैव कृष्णेनेदं सदो हि नः।।
2-39-47a
2-39-47b
तस्मै भीष्माभ्यनुज्ञातः सहदेवः प्रतापवान्।
उपजह्रेऽथ विधिवद्वार्ष्णेयायार्घ्यमुत्तमम्।।
2-39-48a
2-39-48b
`गामर्घ्यं मधुपर्कं च ह्यानीयोपाहरत्तदा।
एतस्मिन्नन्तरे राजन्निदमासीत्तदाऽद्भुतम्।।
2-39-49a
2-39-49b
तां दृष्ट्वा क्षत्रियाः सर्वे पूजां कृष्णस्य भूयसीम्।
सम्प्रेक्ष्यान्योन्यमासीना हृदयैस्तामधारयन्'।।
2-39-50a
2-39-50b
प्रतिजग्राह तां कृष्णः शास्त्रदृष्टेन कर्मणा।
शिशुपालस्तु तां पूजां वासुदेवे न चक्षमे।।
2-39-51a
2-39-51b
उपालभ्य स भीष्मं च धर्मराजं च संसदि।
अवाक्षिपद्वासुदेवं चेदिराजो महाबलः।।
2-39-52a
2-39-52b
`तेषामाकारभावज्ञः सहदेवो न चक्षमे।
मानिनां बलिनां राज्ञां पुरुः सन्दर्शिते पदे।।
2-39-53a
2-39-53b
पुष्पवृष्टिर्महत्यासीत्सहदेवस्य मूर्धनि।
जन्मप्रभृति वृष्णीना सुनीथः शत्रुरब्रवीत्।।
2-39-54a
2-39-54b
प्रष्टा वियोनिजो राजा प्रतिवक्ता नदीसुतः।
प्रतिग्रहीता गोपालः प्रदाता च वियोनिजः।।
2-39-55a
2-39-55b
सदस्या मूकवत्सर्वे आसतेऽत्र किमुच्यते।
इत्युक्त्वा स विहस्याशु पाण्डुं पुनरब्रवीत्।।
2-39-56a
2-39-56b
अतिपश्यसि वा सर्वान्न वा पश्यसि पाण्डव।
तिष्ठत्स्वन्येषु पूज्येषु गोपमर्चितवानसि।।
2-39-57a
2-39-57b
एते चैवोभये तात कार्यस्य तु विनाशके।
अतिदृष्टिरदृष्टिर्वा तयोः किं त्वं समास्थितः'।।
2-39-58a
2-39-58b
।। इति श्रीमन्महाभारते सभापर्वणि
दिग्विजयपर्वणि एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।।39।।

टिप्पणी[सम्पाद्यताम्]

2-39-41 संयुजं सम्बन्धिनं श्वशुरादिम्। प्रियं मित्रम्।। 2-39-52 अवाक्षिपद्दूषितवान्।।

सभापर्व-038 पुटाग्रे अल्लिखितम्। सभापर्व-040
"https://sa.wikisource.org/w/index.php?title=महाभारतम्-02-सभापर्व-039&oldid=50422" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्