पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/४९३

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१५८२ ब्राह्मस्फटसिद्धान्ते इसकी ज्या अन्त्यफलज्या (१२०) व्यासार्ध में = २१ । ‘भगनेत नवचन्द्रेः’ इत्यादि लोक से जो पात (राहु) कहा गया है, उसको १२ में घटाने से स्पष्ट राहु होता हैं । उपपति । भमपिण्ड साधन की तरह यह भी केन्द्रज्या = २७४०।५३।४०७७०६००।११०००।११८००॥ ११६२०॥ केन्द्रकोटिज्या = ११६२०॥१०७I००६२ २००७१२०४७॥२०॥२१००।। ७००॥ अन्त्यफलज्या =२१००२१००२१००२१००२१००२१००॥ २१००॥ स्पको =१३७२०।१२८००११३।७०।६२।२०६८।२०।।४२।००।। १४००॥ = ८४०६/८३२८८२०४७९६२II७७७०७५१५॥७२१०। शक शीफज्या =४१५॥८'१२११ ८२१५-१३।।१७८३॥१७-७८२०-८३।। =१६७३°८७५६२७°२०८४८।६-४२६२९।। ex शीफ =१७७३३४८३।५०५८I६४ ६४८०७६*३२८४७८॥ ८९२६॥ केन्द्रज्या =११४४e॥१०४००६७१०० ।६५।४०४१००॥१४०॥ केन्द्रकोटिज्या =३४२०६०।०१८२।००।१००।०१११३।००।११८।४०।। अन्त्यफलज्या ==२१००।२१।०१२१००॥२१००२१००२१००॥ स्पकोटि = १३।२०।३el००।६१।००II७६००/&२००६७।४०।। =६६०७"६६६४६३७५६१६४॥६०४४५७२०।। शीफज्या =२०८५॥१e६७॥१७१८१३४२८५३२८ = &&२॥६-३७८१८६-३५॥४७१-४२॥ ex शीफ =८७२८८४°३३७३६२५७१५॥३६९६३।१२७८।। आचार्यों का पिण्ड=१८॥३६॥५०॥६६॥७८॥८६॥६०॥ अनुवादककापिण्ड=१८३५I५१।६५।७६८५।८।। आचार्यों का पिण्ड=८८८४७४५८५८३६१६० अनुवादककापिण्ड= ८६।८४।७४।५७३७१३०॥ =