पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/४८६

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ध्यानग्रहोपदेशाध्यायः १५७५ केन्द्र के वश ग्रह में धन ऋण करना चाहिये । मेषादि केन्द्र हो तो शीन फल को प्रह में धन और तुलादि केन्द्र में फल को ग्रहण करना चाहिये । उपपत्ति । नव ( e) से गुणित भागादि शीघ्रफल ही पिण्डाकं पठित है। यह बात २४वें सूत्र में कही गई है। इसलिये पिण्डफल को नव (e ) से भाग देने पर फल भागादि शीघ्रफल होता है । धन और ऋण का नियम स्पष्टाधिकार से जानना चाहिये । इदानीं भौमस्य चतुर्दशपिण्डानाह । वसुवेदा युगनन्दाः खबेदचन्द्राः समुद्रवसुचन्द्राः । वसुयमयमा रसनभोरामा नन्दाग्भिरामाश्च ।। ४७ ।। मोक्षगुण रसरसरामा विलोचनाब्धिगुणाः । वसुवसुयमा वसुदिशो नभश्च कुजशप्रपिण्डाः स्युः ।। ४८ ।। सु. भा.-क्रमेण चतुर्दशपिण्डाः = ४८९४१४०।१८४।२२८।२७०॥३०६॥ ३३९।३५el३६६३४२२६८।१०८l०। अत्र महत्तमपिण्डो नवभक्तो भोमस्य परमं शीघ्रफलम् = ३वृ=४०° । ४० ।। अत्रोपपत्तिः । केन्द्रांशाः = १३°२०u२६°४०'४०°l०५३°२०'६६°४०'८०० ।। ९३°२०'१०६°४०'m१२०°१०'१३३°२०१४६°४०१६०°l०'१७३°२०' खार्कमिते व्यासार्धा केन्द्रज्या=२७|४०||५३|४०॥७७l००९६००॥११०००२१८००॥११६॥ १३।। केन्द्रकोटिज्या=११६२०।१०७l००९२l००lt७१२०॥४७२०२१०० ७००॥ अन्त्यफलज्या=:७८l००१७८००]७८००I७८००५७८/००ll७८l००७८ ७००॥ १. वसुवेदा युगनन्दाः खबेदचन्द्रा समुद्रवसुचन्द्राः । वसुयमयमा वियन्नगयमास्तथा रसनभरामाः ।४७।। २. गोऽग्निगुणा गोऽक्षगुणा रसरसरामा विलोचनाब्धिगुणाः । वसुरसयमा वसुदिशो नभश्च कुजशीघ्रपिण्डः स्युः ।।४८।।