पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२८४

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स्फुटगति वासना १३७५ उपपत्ति । यहां संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये । के = प्रहविम्बकेन्द्र । दृ= दृष्टिस्थान । टके==दृष्टि सूत्र । दृष्टि स्थान से ग्रबिम्ब की स्पर्शरेखा–दृस्प, केप ग्रहबिम्ब व्यासावं, ग्रहबिम्ब व्यासाधे संमुख दृष्टि स्थानगत कोण==स्फुट बिम्बाधंकला, त्रि.केस्प स्फुवि <दृस्पके=&०, तब वुकेस्प त्रिभुज में अनुपात सं - ज्यास्पट्टके= ज्या त्रि • ३ योद्या. =स्फुवि ३ स्वल्पान्तर से ज्या और चाप के अभेदत्व से अतः त्रियोध्या त्रियोव्या अभवं । स्फुविं । मक= मध्यम कर्ण, स्फुट बिम्ब में मध्यम बिम्ब से भाग देने से स्फुवि . योव्यामक 'तब व = मक त्रि. यदि स्वल्पान्तर से योव्यायोव्या वक भवि त्रि. योद्या. क उच्चस्थान में ग्रहबिम्व छोटा होता है, ग्रह गति भी छोटी होती है । नीच स्थान में ग्रह बिम्ब बड़ा होता है, गति भी बड़ी होती है अतः बिम्बों की निष्पत्ति गति की निष्पत्ति के बराबर होती है, अतः मक- = स्फुवि + = स्फुग, अतः मुक.मग =अक स्फुट बिम्ब में इसके उत्थापन मवि से स्फुविः त्रि. योब्या त्रि. स्क्रूग योव्या --- स्वल्पान्तर से। यहां स्वल्पान्तर से – = त्रि. स्फुग. योद्या यदि मध्यमकणं =स्फुट कर्ण कस्फुवि भूयोव्या स्फुवि, अतः तब . क. मग = स्फ़ग.योव्या , मध्यम गति स्थान में इके, दृस्प यष्टिद्वय से वेघ से जो केप मान होता है उसको द्विगुणित करने से योच्या मान होता है । तथा स्फुट गति स्थान में जो केप मान होता है उसको द्विगुणित करने से योव्या मान जानना चाहिये । इख रीति से रवि और चन्द्र का व्यासानयन करना चाहिये, भूव्यासानयन वेघ से होता है उस्रके लिये बटेश्वर सिद्धान्त में मेरी टीका देखनी चाहिये इति ॥३२॥ इदानीं भूभाबिम्बानयनमाह । वकंव्यासान्तरणमिन्दुस्फुटकर्णमकंकर्णाहृतम् । प्रोह्या भुवो भूच्छाया विष्कम्भश्चन्द्रकक्षायाम् ३३॥ सु० भा०–इन्दुस्फुटकथं वकंव्यासान्तरगुणमजंकणेहुत । फलं भुवो