पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/१२९

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१२२० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते तृतीयप्रश्ने कल्प्यते अहर्गणः=य, गतभगणः=के, ततः शुक्ल .=गतभ +भtश अतः प्रभxय=ककृxगतभ+भगणशे समशोधनेन प्रभxय–कक xगतभ=भगणो =ग्रभxय–ककुxक पक्षयोः य योजनेन भगणश+य=यो =प्रभxय+य-ककुxक=य (ग्रभ+१)ककुxक समयोजनेन य (प्रभ+१) =यो+ककुxक समशोधनेन य (प्रभ+१)–यो =ककुक पक्षौ ककुभक्तौ । य (अभ+१) व्यायो =क अत्र कुट्टकेन य मान व्यक्त भवेदिति । । तदा चतुर्थाप्रश्ने कल्प्यते अहर्गणः=य। गत भगणः=क तदा पूर्ववद्भगणशेष =प्रभxय- ककु कैक पक्षयोः गतभगणयोजनेन भगणो+गतभ=ग्रभxय कॐ ॐक+क=ग्रभ xय–क (क--१)=यो समयोजनेन ग्रभ xय= यो+क (ककु-१) समशोधनेन ग्रभxययो=क (ककु–१) पक्ष ककु–१ भक्तौ सदा ग्रभx ययो ध्या=कुट्टकेन क अत्र य मानं सखेन व्यक्त भवेदिति ॥५२॥ ककु–१ अब प्रश्नों को कहते हैं । हि- भा.—जो व्यक्ति इष्ट ग्रह के गत अगदा युत अहर्गाण से अहर्गण को कहता है । वा गतभगण के शेष युत अहमीण से अहर्गण को जो कहता है, वा गतभगण और भगण शेष के ऐक्य से युत अहमीण से अहर्गण को जो कहता है । वा गत भगण और भगण शेष के योग से अहर्गण को जो कहता है वह छुट्टक का पण्डित है । उपपत्ति । के प्रथम प्रश्न में कल्पना करते हैं अहर्गणमान=य । भगणशेषमान==क, तब ग्रभ. य ग्रभ. य _भगणशे_ग्रमक. य-- क अनुपात से ---- =गतभ+भगणशे समशोधन से ककु ककु = गत भगण, दोनों पक्षों में य जोड़ने से गतभ + य = प्रभ- य-+ य प्रभ.यकळे. य +–र – य (प्रभ+)==पो वेदगम करने से य (प्रम + ह्) -क= कछ. यो, समशोधन से य (ग्रभ+कळे)-कनु. य=क, यहाँ छुट्टक से य मान सुगमता से विदित हो जायगा । द्वितीयप्रश्न में कल्पना करते हैं अहर्गणयगतभगण=क, तब अभ. य =गतभ E = = = =